Munawwar Rana: मशहूर शायर मुनव्वर राणा ने 71 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। बीमार चल रहे राणा का दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।
पिछले कई दिनों से ही मुनव्वर राणा की तबीयत खराब चल रही थी और वे लखनऊ पीजीआई में भर्ती थे। 14 जनवरी को देर रात हार्ट अटैक आने से वो दुनिया सिधार गए।
मुनव्वर राणा को किडनी संबंधी कई बीमारियां थीं। उन्हें इस दुनिया को हमेशा के लिए छोड़ दिया। साहित्य जगत में इस समय शोक की लहर है। हर कोई इस महान शायर के जाने से दुखी है।
मुनव्वर राणा का जीवन सिर्फ शेरों-शायरी से चर्चा में नहीं रहता था, बल्कि सियासी रूप से भी वे सक्रिय रहते थे। राजनीतिक मुद्दे पर मुनव्वर राणा काफी सक्रिय थे। वो हमेशा ही सुर्खियों में बने रहते थे।
कभी विवादों से उन्हें लाइमलाइट मिली तो कभी शेरों ने भी महफिलों को आबाद करने का काम किया। यहीं से उन्हें शोहरत मिली।
मुनव्वर राणा शायर और कवि थे। उर्दू के अलावा हिंदी और अवधी भाषाओं में लिखते थे। मुनव्वर ने कई अलग शैलियों में अपनी गजलें प्रकाशित कीं। उनको उर्दू साहित्य के लिए 2014 का साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) और 2012 में शहीद शोध संस्थान द्वारा माटी रतन सम्मान (Maati Ratan Samman) से सम्मानित किया गया था।
शायर राणा को साल 2012 में साहित्य अकादमी अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। लेकिन उन्होंने उस अवॉर्ड को ये कहकर वापस कर दिया कि देश में असहिष्णुता बढ़ गई। तब से उन्होंने कसम खाई थी कि वे कभी भी कोई सम्मान स्वीकार नहीं करेंगे।
मुनव्वर राणा का जन्म 26 नवंबर 1952 को उत्तर प्रदेश के रायबरेली में हुआ था. उर्दू साहित्य और कविता में उनका योगदान सराहनीय रहा। खासकर उनकी गजलों की वजह से उन्हें बड़ी पहचान मिली। वह अक्सर हिंदी और अवधी शब्दों का इस्तेमाल करते थे, जो भारतीय श्रोताओं को काफी पसंद आता था. उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता ‘मां’ है, जो गज़ल शैली में मां के गुणों का बखान करती है।
मुनव्वर राणा को साहित्य अकादमी पुरस्कार और माटी रतन सम्मान से सम्मानित किया गया था। उन्हें मिले अन्य पुरस्कारों में अमीर खुसरो पुरस्कार, मीर तकी मीर पुरस्कार, गालिब पुरस्कार, डॉ. जाकिर हुसैन पुरस्कार और सरस्वती समाज पुरस्कार शामिल हैं।
उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। उनकी रचनाओं में मां, गजल गांव, पीपल छांव, बदन सराय, नीम के फूल, सब उसके लिए, घर अकेला हो गया आदि शामिल हैं।
मुनव्वर राणा का अधिकतर जीवन कोलकाता में बीता। उन्होंने भारत और विदेशों में मुशायरों में उपस्थिति दर्ज कराई।
मुनव्वर राणा का विवादों से भी गहरा नाता रहा है. साल 2022 में यूपी में हुए असेंबली चुनाव से पहले मुनव्वर राना ने कहा था कि योगी आदित्य नाथ अगर दोबारा सीएम बने तो यूपी छोड़ दूंगा। दिल्ली-कोलकाता चला जाऊंगा। मेरे पिता ने पाकिस्तान जाना मंजूर नहीं किया, लेकिन अब बड़े दुख के साथ मुझे यह शहर, यह प्रदेश, अपनी मिट्टी को छोड़ना पड़ेगा।
मुनव्वर ने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के कंधे पर हाथ रखकर ही बुरा कर दिया, जिसकी वजह से उन्होंने उत्तर प्रदेश में भेदभाव फैला दिया।
इस सरकार ने सिर्फ नारा दिया सबका साथ सबका विकास का, हुआ कुछ नहीं। इनका बस चले तो प्रदेश से मुसलमानों को छुड़वा दें। उनके लिए दिल्ली, कोलकाता, गुजरात ज्यादा सुरक्षित है।
साल 2021 में मुनव्वर राणा ने बेटे तबरेज पर हुई फायरिंग के बाद खुद की जान को खतरा बताते हुए गंभीर सवाल उठाए थे, जबकि साल 2020 में कार्टून विवाद को लेकर फ्रांस में स्कूल टीचर की गला रेतकर हत्या करने की घटना को मुनव्वर ने जायज ठहराया था।
उन्होंने तर्क देते हुए कहा था कि अगर मजहब मां के जैसा है, अगर कोई आपकी मां का, या मजहब का बुरा कार्टून बनाता है या गाली देता है तो वो गुस्से में ऐसा करने को मजबूर हैं।
मुनव्वर ने किसान आंदोलन पर ट्विटर पर एक शेर लिखा था, जिस पर विवाद हो गया। अपने इस शेर में राणा ने संसद को गिराकर खेत बनाने की बात कही और सेठों के गोदामों को जला देने की बात कही थी। हालांकि, विवाद होने पर उन्होंने इस ट्वीट को डिलीट कर दिया था।