अनिल कुमार पाण्डेय
JAMMU KASHMIR 2024: केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र का महापर्व जारी है। तीन चरणों में असेंबली का चुनाव चल रहा है। पहले चरण का चुनाव संपन्न हो गया है। दूसरे फेज़ का चुनाव 25 सितंबर और तीसरे दौर का चुनाव 1 अक्टूबर को होगा। नतीजे 8 अक्टूबर को आएंगे। देखिए रिपोर्ट….
जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 18 सितंबर को 24 सीटों हुए 61 फीसदी से ज्यादा पोलिंग हुई। इस बंपर पोलिंग के बाद राजनीतिक दलों को जीत की खुश्बू मिल गई है। वहीं जनता भी उत्साह चरम पर है। अब दूसरे और तीसरे चरण के मतदान के लिए हरेक पार्टियाँ अपने-अपने एज़ेंडे को लेकर दाँव चल रही हैं और अपनी-अपनी जीत के दावे कर रही हैं। हालाँकि पॉलिटिकल पार्टियों को जनता का मूड भाँप पाना उतना आसान नहीं है। पब्लिक की भी अपनी सोच है। उनके बहुत से अपने सपने हैं, जिसे उन्हें चुनी हुई सरकार से पूरा करना है। तीन दशकों से उन्होंने जो झेला है, महसूस किया है, उसे वो भूले नहीं हैं।
हाँ, इतना ज़रूर है कि वर्षों से आतंकवाद की आग में जल रहे ये लोग अब सड़क, पानी, बिजली के साथ विकास के सपने देख रहे हैं। इन सपनों के बीच में ही वो सरकार चुनेंगे। लेकिन ये भी सच है कि भोली-भाली जनता इन नेताओं के वादों, दावों पर भरोसा भी करेगी। इसका असर काउंटिंग के दिन चुनाव परिणाम पर दिखेगा।
वहीं जाति, धर्म और समाज तो हमेशा से ही राजनीति पर हावी रहा है। इन चुनावों में बैकवर्ड-फॉरवर्ड, ओबीसी और एससी-एसटी का कार्ड भी खूब चल रहा है। आरक्षण का मुद्दा भी परवान चढ़ रहा है।
उधर इन सबके बीच जम्मू कश्मीर के लोग बेरोज़गारी झेल रहे हैं। यहाँ ज्यादा पढ़े-लिखे लोग भी नौकरी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। इन हालातों में वो वोट बहुत ही सोच-समझ कर रहे हैं।
वहीं इन सबको लेकर बीजेपी, एनसीपी, कांग्रेस, पीडीपी और अन्य राजनीतिक दल अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए जनता के बीच अभियान चलाए हुए हैं।
बता दें कि इस बीच दूसरे दौर के लिए 26 सीटों पर 25 सितंबर को मतदान होगा। एक अक्टूबर को तीसरे दौर के लिए 40 सीटों पर पोलिंग होगी। जनता के दिल में क्या है? वो 8 अक्टूबर को इस पर फैसला सुना देगी।
गौर करें तो 90 सदस्यीय जम्मू कश्मीर विधानसभा की 47 सीटें कश्मीर घाटी से आती है। इन सीटों पर मुस्लिम आबादी अधिक है। वहीं जम्मू क्षेत्र से 43 सीटें आती है। इन सभी सीटों पर हिंदू वोटर अधिक हैं।
जम्मू कश्मीर विधानसभा
कुल सीटें – 90
कश्मीर घाटी (मुस्लिम बहुल) – 47
जम्मू क्षेत्र (हिंदू बहुल) – 43
बता दें कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव की शुरुआत धमाकेदार तरीके से हुई। पहले चरण में 18 सितंबर को 24 सीटों पर 61.38 फीसदी वोटिंग हुई। एक दशक बाद राज्य में हो रहे विधानसभा चुनाव में अपनी सरकार चुनने के लिए राज्य की अवाम ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
दूसरे चरण में 25 सितंबर को 26 सीटों के लिए पोलिंग होगी। तीसरे चरण के लिए एक अक्टूबर को मतदान होगा। चुनाव परिणाम हरियाणा असेंबली के साथ ही 8 अक्टूबर को आएंगे।
जम्मू कश्मीर असेंबली चुनाव
कुल फेज़ – तीन
पहला फेज़ -18 सितंबर – 24 सीट
दूसरा फेज़ – 25 सितंबर – 26 सीट
तीसरा फेज़ – 1 अक्टूबर – 40 सीट
चुनाव परिणाम – 8 अक्टूबर
गौर करें तो जम्मू कश्मीर असेंबली चुनाव में बीजेपी की राह में कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन दीवार बनकर खड़ा है। वहीं पीडीपी बार-बार ये दोहरा रही है कि राज्य में कोई भी सेक्युलर सरकार उनकी पार्टी के बगैर गवर्नमेंट नहीं बना सकती।
जम्मू कश्मीर असेंबली चुनाव में जीत हासिल करने के लिए बीजेपी राज्य में अमन-चैन वापस आने की दुहाई दे रही है। विकास की बात कर रही है। तीन खानदानों अब्दुल्ला, महबूबा और गाँधी-नेहरू को निशाने पर रखे हुई है। बीजेपी नेता पार्टी की रैलियों और बयानों में लगातार पाकिस्तान का मुद्दा भी उछाल रहे हैं। ताकि जन समस्याओं से जनता का ध्यान हटाया जा सके।
बीजेपी दिग्गज़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीख-चीखकर ये कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर टेरर फ्री होगा। वो जम्मू कश्मीर की बर्बादी के लिए तीन खानदानों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं कि ये लोग कुर्सी पाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
वहीं पीएम मोदी पहले चरण के मतदान में किश्ववाड़, डोडा, रामबन, कुलगाम जैसी जगहों पर बंपर वोटिंग का हवाला देकर ऐसा जता रहे हैं कि जैसे सारे वोट कमल की झोली में ही गिरे हों।
नेशनल कॉंफ्रेंस के मुखिया फारुक अब्दुल्ला अपने भाषणों में बीजेपी, पीएम मोदी और अमित शाह को कटघरे में रख रहे हैं। फारुक अब्दुल्ला कहते हैं कि बीजेपी हर चीज में पाकिस्तान का नाम लेती रहती है।
वहीं उनके बेटे उमर अब्दुल्ला की रट है कि आतंकवाद के लिए बीजेपी को कसूरवार ठहराया जाए। इसके साथ ही उमर कहते हैं कि तीन खानदानों का मुद्दा घिसा-पिटा है। इसका राग अलापने से कुछ नहीं होगा। बीजेपी को जनता सबक सिखाएगी।
जम्मू कश्मीर में पानी, बिजली, सड़क बहुत बड़ी समस्या है। और उससे भी बड़ा बढ़ती बेरोज़गारी का मसला है। जिसे राजनीतिक दल कम करके आँक रहे हैं। लेकिन ये बड़ा मुद्दा है।
गौर करें तो जम्मू कश्मीर से आर्टिकल-370 हटने के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने कई दावे किए थे। इन दावों में था कि अब घाटी में निवेश बढ़ेगा। प्राइवेट और सरकारी क्षेत्र में नौकरियां बढ़ेंगी। बहुतेरी कंपनियां आएंगी और रोज़गार के अवसर बनेंगे। मगर 5 साल बाद भी जमीनी हालात में कुछ बहुत ख़ास नहीं हुआ है।
इस असेंबली चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने गठबंधन किया है। श्रीनगर में एक चुनावी सभा के दौरान फारूक अब्दुल्ला ने बीजेपी पर हमला बोला है। उन्होंने कहाकि बीजेपी अपनी गलतियों के लिए पाकिस्तान को दोषी ठहराती है। उन्होंने केंद्र सरकार के दावों की हवा निकालते हुए कहाकि से अनुच्छेद 370 के खात्मे के बावज़ूद घाटी में आतंकवाद का नाश नहीं हुआ है।
वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नौशेरा की चुनावी जनसभा में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को लताड़ते हुए कहाकि जब मोदी जी आए तो आतंकवादियों को हमने चुन-चुनकर साफ कर दिया।
नेशनल कॉन्फ्रेंस पर हमला करते हुए शाह ने कहा कि 30 साल तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद चला। जम्मू कश्मीर में तीन दशक में 3 हजार दिन कर्फ्यू लगा रहा। इस दौरान 40 हजार से अधिक लोग मारे गए। उन्होंने कहाकि जब कश्मीर जल रहा था, तब फारूक अब्दुल्ला लंदन में छुट्टियां मना रहे थे।
बीजेपी के नैरेटिव में पाकिस्तान भी ख़ास है। चुनावी रैलियों और मीटिंगों में अमित शाह कहते हैं कि जब तक आतंकवाद का खात्मा नहीं हो जाता, हम पाकिस्तान से बातचीत नहीं करेंगे। इतना ही नहीं वो विपक्ष पर वार करते हुए कहते है कि अपोजिशन पत्थरबाजों को रिहा कराना चाहता है। वो चिल्ला-चिल्ला कर कहते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कोई भी आतंकवादी अब खुला नहीं घूमेगा।
बीजेपी आरक्षण को भी एक बड़ा चुनावी हथियार बनाए हुए है। पीएम मोदी और अमित शाह अपने भाषणों में पहाड़ियों, गुर्जर बकरवाल, दलित, वाल्मीकि, ओबीसी के आरक्षण की बात उठाते रहते हैं। साथ ही कहते हैं कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वो रिज़र्वेशन ख़त्म कर देगी। शाह गुर्जरों के मुद्दे पर फारुक अब्दुल्ला पर भी हमलावर नज़र आते हैं।
गौर करें तो अबकी बार असेंबली चुनाव में बीजेपी के लिए कई पॉजिटिव बातें और भी हैं। जैसे कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र की बीजेपी सरकार ने जम्मू कश्मीर के लिए एक नया सुरक्षा सिद्धांत अपनाया। इसके तहत सख्त कदम उठाए गए। इससे बीते 35 सालों से कश्मीर में जारी हिंसा के चक्र को तोड़ा जा सका।
इसके साथ ही सुरक्षा एजेंसियों को स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमति दी गई। अलगाववादी, पत्थरबाज और आतंकी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई।
एनआईए, ईडी, एसआईए और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने साथ मिलकर फंडिंग नेटवर्क्स की कमर तोड़ दी। इस नेटवर्क के ज़रिए ही कश्मीर में हो रही हिंसा के लिए ऑक्सीजन मिल रही थी। इसी से दक्षिण कश्मीर में पत्थरबाजों और आतंकियों के ओवर ग्राउंड नेटवर्क को बहुत हद तक तोड़ा गया।
इस ऑपरेशन ने राज्य की सुरक्षा स्थिति में बड़ा सुधार लाया। उसका ये नतीज़ा रहा कि सभी दल सक्रियता के साथ चुनाव अभियान चला रहे हैं। और पहले चरण में रिकॉर्ड मतदान भी हुआ है।
कांग्रेस की बात करें तो वो भी सधी हुई चाल चल रही है। वो बीजेपी पर अटैक कर रही है। अमित शाह और पीएम मोदी को निशाने पर ले रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे तो यहाँ तक कहते हैं कि बीजेपी वालों का दिमाग ही ज़हरीला है।
खरगे जम्मू-कश्मीर में दरबार मूव प्रथा बहाल करके जम्मू और कश्मीर के लोगों को जोड़ने की बात करते हैं। वो जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था और लोगों के बीच संपर्क की दुहाई देकर कांग्रेस का वोट पक्का करना चाहते हैं।
कांग्रेस जम्मू-कश्मीर को उसके पूर्ण राज्य का दर्जा वापस दिलाने की भी भरपूर वकालत कर रही है।
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में लोकलुभावन वायदे किए हैं। जो लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है। गौर करें तो कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में हरेक व्यक्ति को 25 लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा कवर देने का वायदा किया है। हर जिले में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल स्थापित करने की भी कसम खाई है।
इसके साथ ही प्रत्येक परिवार की महिला मुखिया को हरेक माह 3000 रुपये की आर्थिक मदद की घोषणा की है। विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए डॉ. मनमोहन सिंह के पुनर्वास पैकेज को लागू करने का एलान किया है।
ओबीसी को अधिकार देने की वकालत की है। देशभर में जातीय जनगणना कराने का दम भरा है। जम्मू-कश्मीर में खाली पड़े एक लाख सरकारी नौकरियों के पदों को भरने पर भी जोर दे रही है। कांग्रेस के इन वायदों का मतदाताओं पर कितना असर पड़ेगा, ये तो मतपेटियाँ खुलने के बाद ही पता चलेगा। लेकिन कांग्रेस का थिंक टैंक इसको लेकर आशान्वित है कि राज्य में उनकी ही सरकार बनेगी।
पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी यानी पीडीपी की महबूबा मुफ्ती भी अपनी पार्टी के लिए जीत का दम भर रही हैं। पीडीपी अकेले ही राज्य में चुनाव लड़ रही है। साथ ही ये घूम-घूमकर कह रही है कि पीडीपी के बिना कोई धर्मनिरपेक्ष सरकार राज्य में नहीं बना सकती है।
नेशनल कांफ्रेंस ने भी अपने चुनावी घोषणापत्र में कई वादे किए हैं। इन वादों में 200 यूनिट मुफ्त बिजली की बात कही गई है। पानी के संकट से राहत दिलाने और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को हर साल 12 एलपीजी सिलेंडर मुफ्त में देने की बात कही गई है।
साथ ही नेशनल कांफ्रेंस ने सत्ता में आने के 180 दिनों के भीतर एक व्यापक नौकरी पैकेज, एक लाख युवाओं को नौकरियां देने और सरकारी विभागों में सभी रिक्तियों को भरने का भी दम भरा है।
उधर बारामूला सांसद इंजीनियर रशीद की पार्टी अवामी इत्तिहाद पार्टी (AIP) ने प्रतिबंधित पार्टी जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों से गठजोड़ कर लिया है। ऐसे में इस नए गठबंधन ने अन्य पार्टियों की टेंशन बढ़ा दी है। इस गठबंधन के कारण घाटी में नेशनल कॉंफ्रेंस और पीडीपी का वोट बैंक खिसक सकता है।
इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी भी अकेले ही चुनावी मैदान में है। वहीं इंजीनियर रशीद की चुनाव से पहले जेल से रिहाई और अब जमात के साथ गठबंधन की वजह से उन पर बीजेपी के ‘प्रॉक्सी’ समर्थक होने का आरोप लग रहा है।
सही मायनों में देखा जाए तो इंजीनियर रशीद की पार्टी और जमात ए इस्लामी का गठबंधन कांग्रेस, एनसी और पीडीपी के ख़िलाफ़ एक मोर्चा है। इस मोर्चे के ज़रिए इनके वोट बैंक को तोड़ने की ये एक कोशिश हो सकती है।
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कांफ्रेस ने अपने घोषणा पत्र में अनुच्छेद 370 की बहाली और जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने का दम भरा है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो तस्वीर साफ है कि बीजेपी जम्मू क्षेत्र में दमदार उपस्थिति दर्ज कराना चाह रही है। वहीं घाटी में कम सीटों पर उम्मीदवार उतार कर भाजपा तथाकथित प्रॉक्सी टीम को जाने-अनजाने में समर्थन दे रही है। इंजीनियर रशीद की पार्टी अवामी इत्तिहाद और जमात ए इस्लामी का गठबंधन घाटी में कांग्रेस और एनसी को कई सीटों पर कमज़ोर करेगा। इतना ही नहीं अवामी इत्तिहाद पार्टी और जमात ए इस्लामी के निर्दलीय कैंडिडेट के गठजोड़ से सबसे अधिक नुकसान महबूबा मुफ्ती की पीडीपी को हो सकता है।
जम्मू कश्मीर चुनाव के बाद ताज किस पार्टी के सिर सजेगा? ये तो काउंटिंग के बाद ही पता चलेगा। लेकिन बीजेपी अपने जीते हुए विधायकों, छोटे दलों और घाटी के निर्दलीय उम्मीदवारों के दम पर राज्य की लगाम अपने हाथों में रखना चाहेगी। वहीं कांग्रेस और एनसीपी का गठबंधन भी सत्ता सुख के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार बैठा है। उधर महबूबा भी लगातार ये रट लगा रही हैं कि बगैर उनके जम्मू कश्मीर में सेक्युलर सरकार नहीं बन सकती।
चुनाव संभावनाओं का खेल है। यहाँ कुछ भी हो सकता है। वक्त का इंतज़ार करिए। नतीजे आने दीजिए। फिर देखिए कसमें खाने वाले गठबंधन कैसे टूटते हैं और एक-दूसरे की आँखों को न सुहाने वाले कैसे एक दूसरे को बाँहों में भर लेते हैं।