Saturday, November 23, 2024
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Aditya L1 ISRO: सूर्य का रहष्य जानने आदित्य L1 पृथ्वी की कक्षा में पहुंचा

Aditya L1 110 दिन में 15 लाख किमी दूर L1 पॉइंट पर पहुंचेगा

भारत के आदित्य L1 को PSLV-C57 रॉकेट से लॉन्च किया गया 

चंद्रयान-3 की चांद पर कामयाबी के बाद भारतीयों को खुशखबरी

ये 6 जनवरी 2024 को L1 पॉइंट तक पहुंचेगा आदित्य L1

सूरज की गर्म हवाओं का अध्ययन करेगा, फोटो खींचेगा

Aditya L1 ISRO: चंद्रयान-3 की चांद के दक्षिणी ध्रुव पर कामयाब लैंडिंग के 10वें दिन ISRO ने शनिवार को आदित्य L1 मिशन लॉन्च कर दिया। आदित्य सूर्य की स्टडी करेगा। इसे सुबह 11.50 बजे PSLV-C57 के XL वर्जन रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया।

रॉकेट ने 63 मिनट 19 सेकेंड बाद आदित्य को 235 x 19500 Km की पृथ्वी की ऑर्बिट में छोड़ दिया। करीब 4 महीने बाद यह 15 लाख Km दूर लैगरेंज पॉइंट-1 तक पहुंचेगा। इस पॉइंट पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता, जिसके चलते यहां से सूरज पर आसानी से रिसर्च की जा सकती है। ​

इसरो ने बताया कि आदित्य L1 की पहली ऑर्बिट रेजिंग 3 सितंबर को सुबह 11:45 बजे की जाएगी। ऑर्बिट बढ़ाने के लिए आदित्य L1 के थ्रस्टर कुछ देर के लिए फायर किए जाएंगे।

आदित्य L1 को शनिवार को PSLV-C57 के XL वर्जन रॉकेट से लॉन्च किया गया।

PSLV रॉकेट ने आदित्य को 235 x 19500 Km की पृथ्वी की कक्षा में छोड़ा।

16 दिनों तक पृथ्वी की कक्षा में रहेगा। 5 बार थ्रस्टर फायर कर ऑर्बिट बढ़ाएगा।

फिर से आदित्य के थ्रस्टर फायर होंगे और ये L1 पॉइंट की ओर निकल जाएगा।

110 दिन के सफर के बाद आदित्य ऑब्जरवेटरी इस पॉइंट के पास पहुंच जाएगा

थ्रस्टर फायरिंग के जरिए आदित्य को L1 पॉइंट के ऑर्बिट में डाल दिया जाएगा।

लैगरेंज पॉइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच मैथमैटीशियन जोसेफी-लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में L1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच पॉइंट धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल बैलेंस हो जाता है और सेंट्रिफ्यूगल फोर्स बन जाती है।

ऐसे में इस जगह पर अगर किसी ऑब्जेक्ट को रखा जाता है तो वह आसानी उस पॉइंट के चारो तरफ चक्कर लगाना शुरू कर देता है। पहला लैगरेंज पॉइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे कुल 5 लैंगरेंज पॉइंट मोजूद है।

इसरो का कहना है कि L1 पॉइंट के आसपास हेलो ऑर्बिट में रखा गया सैटेलाइट सूर्य को बिना किसी ग्रहण के लगातार देख सकता है। इससे रियल टाइम सोलर एक्टिविटीज और अंतरिक्ष के मौसम पर भी नजर रखी जा सकेगी। ये 6 जनवरी 2024 को L1 पॉइंट तक पहुंचेगा।

आदित्य एल1 पर कई पेलोड लगे हैं। PAPA यानी प्लाज्मा एनालाइजर पैकेज फॉर आदित्य पेलोड सूरज की गर्म हवाओं की अध्ययन करेगा।

VELC यानी विजिबल लाइन एमिसन कोरोनाग्राफ सूरज की हाई डेफिनेशन फोटो खींचेगा।

SUIT यानी सोलर अल्ट्रावायलेट इमेजिंग टेलिस्कोप सूरज की अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ की फोटो लेगा।

HEL10S यानी हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर हाई-एनर्जी एक्स-रे की स्टडी करेगा।

ASPEX यानी आदित्य सोलर विंड पार्टिकल एक्सपेरिमेंट: अल्फा पार्टिकल्स की स्टडी करेगा।

MAG यानी एडवांस्ड ट्राई-एक्सियल हाई रेजोल्यूशन डिजिटल मैग्नेटोमीटर्स: मैग्नेटिक फील्ड की स्टडी करेगा।

जिस सोलर सिस्टम में हमारी पृथ्वी है, उसका केंद्र सूर्य ही है। सभी आठ ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते हैं। सूर्य की वजह से ही पृथ्वी पर जीवन है। सूर्य से लगातार ऊर्जा बहती है। इन्हें हम चार्ज्ड पार्टिकल्स कहते हैं। सूर्य का अध्ययन करके ये समझा जा सकता है कि सूर्य में होने वाले बदलाव अंतरिक्ष को और पृथ्वी पर जीवन को कैसे प्रभावित कर सकते हैं।

प्रकाश का सामान्य प्रवाह जो पृथ्वी को रोशन करता है और जीवन को संभव बनाता है।

प्रकाश, कणों और चुंबकीय क्षेत्रों का विस्फोट जिससे इलेक्ट्रॉनिक चीजें खराब हो सकती हैं।

इसे सोलर फ्लेयर कहा जाता है। जब ये फ्लेयर पृथ्वी तक पहुंचता है तो पृथ्वी की मैग्नेटिक फील्ड हमें इससे बचाती है। अगर ये ऑर्बिट में मौजूद सैटेलाइटों से टकरा जाए तो ये खराब हो जाएंगी और पृथ्वी पर कम्युनिकेशन सिस्टम से लेकर अन्य चीजें ठप पड़ जाएंगी।

अब तक का सबसे बड़ा सोलर फ्लेयर 1859 में पृथ्वी से टकराया था। इसे कैरिंगटन इवेंट के नाम से जाना जाता है। तब ग्लोबल टेलीग्राफ कम्युनिकेशन प्रभावित हुआ था। इसीलिए इसरो सूर्य को समझना चाहता है। अगर सोलर फ्लेयर की पहले से जानकारी होगी तो इससे निपटने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।

सूरज इतना विशाल है कि इसमें 13 लाख पृथ्वी समा जाएं। ये इतना गर्म है कि 1 लाख करोड़ परमाणु बम के विस्फोट से निकली ऊर्जा भी फीकी पड़ जाए। सूरज 460 करोड़ साल का हो चुका है और इसके अगले 1,000 करोड़ साल तक बने रहने की संभावना है। 

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