Diwali 31 October 2024: दिवाली इस महीने 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। ये फैसला अखिल भारतीय विद्वत परिषद ने डक्लियर कर दिया है। जयपुर में हुई बैठक में विद्वत परिषद ने सर्वसम्मत से 31 अक्टूबर 2024 को ही दीपावली मनाने का फैसला लिया है।
दिवाली, जिसे दीपावली भी कहा जाता है, भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जो पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह रोशनी का पर्व है, जो बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश और अज्ञानता पर ज्ञान की जीत का प्रतीक है। इस पर्व का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, और यह न केवल हिंदू धर्म में बल्कि सिख, जैन और बौद्ध धर्म में भी विशेष स्थान रखता है।
दिवाली का ऐतिहासिक महत्व
दिवाली के इतिहास को विभिन्न धार्मिक कथाओं और मान्यताओं से जोड़ा जाता है। हिंदू धर्म में, दिवाली की सबसे प्रमुख कथा भगवान राम के अयोध्या लौटने से संबंधित है। माना जाता है कि भगवान राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण, रावण का वध करने और 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए दीप जलाए, और तभी से दीप जलाने की परंपरा दिवाली के रूप में शुरू हुई।
सिख धर्म में, दिवाली गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर के किले से रिहा होने की खुशी में मनाई जाती है। जैन धर्म में, इसे भगवान महावीर के निर्वाण दिवस के रूप में मनाया जाता है। वहीं बौद्ध धर्म में, यह सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने की याद में मनाया जाता है।
दिवाली का धार्मिक महत्व
दिवाली को लक्ष्मी पूजन का पर्व भी माना जाता है, क्योंकि यह मान्यता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी, धन और समृद्धि की देवी, पृथ्वी पर आती हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। व्यापारी और कारोबारी वर्ग इस दिन नए खाता-बही (खाताबुक) की शुरुआत करते हैं और मां लक्ष्मी से धन-धान्य की कामना करते हैं।
दिवाली की पूजा विधि
दिवाली के दिन घरों की साफ-सफाई और सजावट का विशेष महत्व है, क्योंकि यह माना जाता है कि देवी लक्ष्मी स्वच्छ और सुसज्जित स्थानों में निवास करती हैं। शाम के समय, घरों में दीपक और मोमबत्तियां जलाई जाती हैं और विशेष रूप से लक्ष्मी-गणेश की पूजा की जाती है। पूजा विधि इस प्रकार होती है:
- स्नान और शुद्धीकरण: पूजा करने से पहले, परिवार के सभी सदस्य स्नान कर स्वयं को शुद्ध करते हैं।
- मूर्ति स्थापना: लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियों को एक साफ स्थान पर स्थापित किया जाता है। उनके सामने चावल, रोली, फूल, धूप, दीपक और मिठाई रखी जाती हैं।
- पूजा का आरंभ: पूजा में पहले गणेश जी की पूजा होती है, क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता माना जाता है। इसके बाद लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, जिसमें उनकी चरण पादुका का पूजन और आरती होती है।
- कुबेर पूजा: कुछ घरों में कुबेर, जो धन के देवता माने जाते हैं, की भी पूजा की जाती है।
- आरती और प्रसाद: अंत में लक्ष्मी और गणेश जी की आरती की जाती है, और पूजा के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है।
दिवाली का सांस्कृतिक महत्व
दिवाली केवल धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और परंपराओं का प्रतीक भी है। इस दिन लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ, उपहार और शुभकामनाएँ देते हैं। घरों और दुकानों में रंग-बिरंगे दीये और लाइटें जलाकर रोशनी की जाती है। बच्चे और युवा आतिशबाजी का आनंद लेते हैं, जबकि बड़े-बुजुर्ग पूजा-अर्चना में व्यस्त रहते हैं।
इस दिन समाज में भाईचारा और सद्भावना का संदेश फैलाया जाता है। परिवार और मित्रों के साथ मिलकर उत्सव मनाने का यह पर्व सामाजिक एकता और सद्भाव का प्रतीक बन गया है।
दिवाली के पांच दिन
दिवाली केवल एक दिन का उत्सव नहीं है, बल्कि यह पांच दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसमें हर दिन का अपना विशेष महत्व होता है:
- धनतेरस: इस दिन धन और स्वास्थ्य के देवता धन्वंतरि की पूजा होती है। लोग इस दिन सोना, चांदी, और बर्तन खरीदते हैं।
- नरक चतुर्दशी (काली चौदस): इसे नरकासुर पर भगवान कृष्ण की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन उबटन लगाकर स्नान किया जाता है।
- दीपावली: मुख्य पर्व दिवाली का दिन, जब लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। दीप जलाए जाते हैं और घरों को रोशन किया जाता है।
- गोवर्धन पूजा: इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने की कथा का स्मरण किया जाता है।
- भाई दूज: यह दिन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित होता है। बहनें अपने भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं और भाई उन्हें उपहार देते हैं।
दिवाली का समकालीन स्वरूप
आज के दौर में, दिवाली को नए ढंग से भी मनाया जा रहा है। जहाँ एक तरफ परंपरागत पूजा और रीति-रिवाज बनाए रखे जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता भी बढ़ रही है। लोग अब पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए ग्रीन दिवाली मनाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं, जिसमें पटाखों का कम या कोई इस्तेमाल नहीं होता है और प्राकृतिक रंगों से रंगोली बनाई जाती है।
निष्कर्ष
दिवाली का पर्व भारतीय समाज में एकता, प्रेम, और समृद्धि का प्रतीक है। यह पर्व हमें अच्छाई, प्रकाश और ज्ञान की ओर प्रेरित करता है। चाहे इसका धार्मिक महत्व हो या सांस्कृतिक, दिवाली हर भारतीय के जीवन में खुशियों और उल्लास का उत्सव बनकर आता है।