भावुकता भरे ‘आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी’ का मंचन
Durga Bhabhi:पुण्यतिथि पर आज दुर्गादेवी फिर मंच पर जीवंत हो देश की आज़ादी के लिए बेखौफ संघर्ष करती नजर आयीं। मंच पर दर्शकों को भावुक और उद्वेलित कर देने वाली इस मार्मिक प्रस्तुति ‘आजादी की दीवानी दुर्गा भाभी’ का मंचन अक्षयवर नाथ श्रीवास्तव के लेखन-निर्देशन में दिल्ली-गाजियाबाद के कलाकार संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश व अवसर ट्रस्ट के सहयोग से थर्टीन्थ स्कूल ऑर टैलेण्ट डेवलपमेण्ट के कलाकारों ने किया। पूरा प्रेक्षागृह क्रान्तिमय उद्घोषों से गूंज उठा।
नवरात्र के प्रथम दिन मंचित इस नाटक में दुर्गा भाभी के जीवन के कई प्रसंग दिखे। दुर्गादेवी वोहरा 13 वर्ष की उम्र में क्रान्तिकारी पति भगवतीचरण वोहरा के साथ आजादी के लड़ाई में कूद गयीं और क्रान्तिकारियों की भाभी बन गयीं। पति के बलिदान के बाद भी वह सधवा बन कर रहीं और कभी अंग्रेजों की पकड़ में नहीं आयीं।
लखनऊ माण्टेसरी इण्टर कालेज सदर की स्थापना करने वाली दुर्गा भाभी ही थीं। 35-40 कलाकारों की टीम के साथ मंचित प्रस्तुति में उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं में कि 19 दिसंबर, 1928 को जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने लाला लाजपत राय जी की हत्या का बदला लेने के लिए असिस्टेंट पुलिस अधीक्षक जॉन सॉण्डर्स की हत्या कर दी तब ’दुर्गा भाभी’ ने समाज की परवाह किए बिना अपने तीन साल के बेटे को साथ लेकर भगत सिंह को अपना पति और राजगुरु को परिवार का नौकर बनाकर उन्हें अंग्रेज सिपाहियों की नजरों से बचाकर कलकत्ता पहुंचाया, दर्शकों को रोमांचित कर गयी। चंद्रशेखर आजाद के आखिरी वक्त तक साथ रही बमतुल बुखारा पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही दी थी।
उन्होंने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण लाहौर व कानपुर में लिया था। अक्टूबर, 1930 को ’दुर्गा भाभी’ ने दक्षिण बॉम्बे में लैमिंगटन रोड पर गवर्नर हैली पर गोली चलाई, जिसमें गवर्नर हैली तो बच गया, किंतु उसके साथ खड़ा हुआ एक ब्रिटिश सैनिक अधिकारी टेलर घायल हो गया। मुंबई के पुलिस कमिश्नर को भी ’दुर्गा भाभी’ में गोली मारी थी।
बाद में मुंबई के एक फ्लैट से दुर्गा भाभी और साथी यशपाल को गिरफ्तार कर जेल हुई। जोश और संवेदनाओं से भी इस प्रस्तुति को रुचिकर और दर्शनीय बनाने में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ ही गीत-संगीत, संवाद सहित सभी रंग पक्षों का बेहतर तालमेल बनाया गया।
प्रस्तुति में गीत डा.चेतन आनंद और संगीत संकल्प श्रीवास्तव का, दृश्यबंध और प्रकाश परिकल्पना राघव प्रकाश और दिव्यांग श्रीवास्तव की, रूपसज्जा हरि सिंह खोलिया की और कला निर्देशन प्रखर श्रीवास्तव का रहा।
नाटक में मुख्य भूमिका में तनु पाल के साथ आभास सिंह, शिवम सिंघल, अभिषेक त्यागी, जतिन शर्मा, श्रेयस अग्निहोत्री, साक्षी देशवाल, मनु वर्मा, कल्याणी मिश्रा, राजीव वैद, सिमरन मिश्रा, साधना, बालकृष्ण, निशांत शर्मा, अनिरुद्ध, विनयकुमार, नेहा पाल आदि ने किरदारों को जीवंत किया। इस अवसर पर दुर्गा भाभी के भतीजे के पुत्र जगदीश भट्ट, शहर के प्रतिष्ठित रंगकर्मी और रंगप्रेमी उपस्थित रहे।