Mohan Bhagwat: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर कहा कि यह दिन भारत की सच्ची स्वतंत्रता का प्रतीक है, जो लंबे समय से शत्रुओं के आक्रमण झेलते हुए इस दिन प्रतिष्ठित हुई।
हिंदू पंचांग के अनुसार, अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पिछले साल पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को हुई थी, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में 22 जनवरी 2024 को पड़ी थी। इस साल, पौष शुक्ल पक्ष द्वादशी की तिथि 11 जनवरी को आई।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि को ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यह दिन भारत की सच्ची स्वतंत्रता का प्रतीक है, जो लंबे समय से शत्रुओं के आक्रमण झेलते हुए इस दिन प्रतिष्ठित हुई। भागवत ने यह बयान श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के महासचिव चम्पत राय को इंदौर में ‘राष्ट्रीय देवी अहिल्या पुरस्कार’ प्रदान करते हुए दिया।
हिंदू पंचांग के अनुसार, अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पिछले साल पौष माह की शुक्ल द्वादशी तिथि को हुई थी, जो 22 जनवरी 2024 के दिन पड़ी थी। इस साल, यह तिथि 11 जनवरी को थी। भागवत ने इस अवसर पर कहा कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि को ‘प्रतिष्ठा द्वादशी’ के रूप में मनाना चाहिए, क्योंकि यह दिन भारत के ‘स्व’ को जागृत करने का प्रतीक है, जो सदियों तक विदेशी आक्रमणों का सामना करता रहा है।
भागवत ने आगे कहा कि 15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से राजनीतिक स्वतंत्रता मिली थी, लेकिन तब देश का संविधान पूरी तरह से उस दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता था, जो भारत के असली ‘स्व’ से जुड़ा था। उन्होंने यह भी कहा कि भगवान राम, कृष्ण और शिव के आदर्श भारत के ‘स्व’ का हिस्सा हैं और यह कतई नहीं है कि ये केवल उन्हीं लोगों के देवता हैं जो इनकी पूजा करते हैं।
भागवत ने स्पष्ट किया कि राम मंदिर आंदोलन किसी व्यक्ति विशेष का विरोध करने या विवाद उत्पन्न करने के लिए नहीं था, बल्कि यह आंदोलन भारत के असली ‘स्व’ को जागृत करने के लिए था ताकि देश अपने पैरों पर खड़ा होकर दुनिया को रास्ता दिखा सके। उन्होंने यह भी कहा कि इस आंदोलन में कई शक्तियां बाधाएं डाल रही थीं, ताकि अयोध्या में राम के मंदिर का निर्माण न हो सके।
उन्होंने इस दौरान यह भी कहा कि पिछले साल अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान देश में कोई हिंसा या विवाद नहीं हुआ और लोग पवित्र भावना से इस पल के गवाह बने।
भागवत ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से हुई एक मुलाकात का भी जिक्र किया, जब घर वापसी (धर्मांतरित लोगों का अपने मूल धर्म में लौटना) का मुद्दा संसद में उठ रहा था। मुखर्जी ने कहा था कि भारत का संविधान दुनिया का सबसे धर्मनिरपेक्ष संविधान है और हमें धर्मनिरपेक्षता सिखाने का कोई अधिकार नहीं है। भागवत ने इसे भारतीय परंपरा से जोड़ते हुए बताया कि यह परंपरा राम, कृष्ण और शिव के आदर्शों से ही शुरू हुई थी।
भागवत ने 1980 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान उनसे किए गए सवालों का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय लोग उनसे यह पूछते थे कि रोजी-रोटी की चिंता छोड़कर मंदिर का मुद्दा क्यों उठाया जा रहा है? उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि जब समाजवाद और गरीबी उन्मूलन के बावजूद भारत पिछड़ा हुआ था, वहीं इजरायल और जापान जैसे देश तेजी से आगे बढ़ गए थे।
चम्पत राय ने पुरस्कार ग्रहण करने के बाद इसे राम मंदिर आंदोलन में भाग लेने वाले सभी ज्ञात और अज्ञात लोगों को समर्पित किया। उन्होंने राम मंदिर को ‘हिंदुस्तान की मूंछ’ (राष्ट्रीय गौरव) का प्रतीक बताया।
सुमित्रा महाजन ने पुरस्कार समारोह में कहा कि इंदौर में देवी अहिल्याबाई का एक भव्य स्मारक बनाया जाएगा ताकि लोग उनके जीवन और योगदान को जान सकें।