Tuesday, December 3, 2024
HomeHOMEMP Election: मध्य प्रदेश में बीजेपी, कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी...

MP Election: मध्य प्रदेश में बीजेपी, कांग्रेस के साथ आम आदमी पार्टी भी रेस में 

MP Election: मध्य प्रदेश में अबकी सरकार बनाने के लिए बीजेपी पूरा जोर लगाए हुए है। वहीं कांग्रेस वासपी के लिए कमर कसे है।

बता दें कि मध्य प्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद रोमांचक रहा था। 230 सदस्यीय असेंबली में कांग्रेस को बहुमत से दो कम 114 सीटें मिलीं थीं। वहीं, बीजेपी 109 सीटों पर आ गई।

MP Election: मध्य प्रदेश में इसी साल नवंबर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी, कांग्रेस समेत सभी दल चुनावी तैयारियों में जुट गए हैं। चुनाव के पहले बीजेपी ने महिलाओं को हर महीने एक हजार देने के लिए लाड़ली बहना योजना का ऐलान किया है।

पार्टी इस योजना के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे के दम पर सत्ता वापसी की उम्मीद कर रही है। वहीं, कांग्रेस एक बार फिर किसानों की कर्ज माफी के साथ ही 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने का वादा करके फिर से सत्ता में आने की उम्मीद कर रही है।

वहीं, आम आदमी पार्टी भी फ्री बिजली की घोषणा करके राज्य में चुनावी बिगुल बजा दिया।

बीते पांच साल में यह राज्य दो सरकारें देख चुका है। 2018 में आए चुनाव नतीजों के बाद राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस ने सरकार बनाई। कमलनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, राज्य की कमलनाथ सरकार 15 महीने तक ही चल सकी। 15 महीने बाद एक बार फिर राज्य में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई।

मध्य  प्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव कई मायनों में बेहद रोमांचक रहा था। 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को बहुमत से दो कम 114 सीटें मिलीं थीं। वहीं, भाजपा 109 सीटों पर आ गई। हालांकि, यह भी दिलचस्प था कि भाजपा को 41 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को 40.9 फीसदी वोट मिला था।

बीएसपी को दो, जबकि अन्य को 5 सीटें मिलीं। नतीजों के बाद कांग्रेस को बसपा, सपा और अन्य का साथ मिलकर सरकार बनाई। इस तरह से राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने।

दिसंबर 2018 से मार्च 2020 तक कांग्रेस ने सरकार चलाई। इस दौरान कई मौके आए जब पार्टी के नेताओं ने अपनी सरकार पर वादे पूरे करने के लिए दबाव बनाया। 15 महीने पूरे होते-होते कमलनाथ सरकार की सत्ता से विदाई की पटकथा तैयार हो चुकी थी।

पांच मार्च 2020 को मध्य प्रदेश के सियासी ड्रामे का केंद्र बेंगलुरू हो गया। दो हफ्ते के भीतर यहां कांग्रेस बागी विधायकों की संख्या बढ़ते-बढ़ते 22 पहुंच गई। इस बीच 10 मार्च 2020 को, कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली आए।

इस मुलाकात के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया। अगले दिन यानी 11 मार्च को सिंधिया ने भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा की उपस्थिति में बीजेपी का दामन थाम लिया।

राज्य में सियासी उठापटक यहीं नहीं रुकी। आगे यह मामला देश की सर्वोच्च अदालत पहुंच गया। मध्य प्रदेश में फ्लोर टेस्ट के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 19 मार्च को, कोर्ट ने आदेश दिया कि मध्य प्रदेश विधान सभा में फ्लोर टेस्ट 20 मार्च 2020 की शाम 5 बजे तक किया जाना चाहिए।

हालांकि, कांग्रेस ने यहीं से अपनी हार मान ली और 20 मार्च को दोपहर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपना इस्तीफा सौंप दिया। अगले दिन 21 मार्च को, दिल्ली में, जे पी नड्डा की उपस्थिति में, विधायकी से इस्तीफा दे चुके सभी 22 बागी भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद 23 मार्च 2020 को, शिवराज सिंह चौहान ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

सरकार गिरने के बाद भी कांग्रेस में इस्तीफे का दौर नहीं थमा। 23 जुलाई 2020 को पार्टी के अन्य तीन विधायकों ने कांग्रेस को अलविदा कह बीजेपी का दामन थाम लिया।

इसके अलावा, 3 सीटें (जौरा, आगर और ब्यावरा) अपने संबंधित मौजूदा विधायकों के निधन के कारण खाली हो गईं। तीन नवंबर 2020 को सभी 28 खाली सीटों को भरने के लिए उपचुनाव कराया गया। इस उपचुनाव में 28 में से भाजपा को 19 और कांग्रेस को 9 सीटें मिलीं।

यहां दिलचस्प था कि कांग्रेस से बगावत करने वाले 25 विधायकों में से 18 नेता भाजपा की टिकट पर दोबारा चुनाव जीत गए जबकि सात को हार का सामना करना पड़ा।

पिछले साल जून में राष्ट्रपति चुनाव से पहले मध्य प्रदेश में तीन विधायक भाजपा में शामिल हो गए। इनमें बसपा विधायक संजीव सिंह, सपा विधायक बबलू शुक्ला और निर्दलीय विधायक विक्रम राणा ने भाजपा की सदस्यता ले ली थी।

इसे राष्ट्रपति चुनाव में बीजेपी की वोट वैल्यू बढ़ाने के प्रयास के तौर पर देखा गया। हालांकि, संजीव सिंह और बबलू शुक्ला 2020 में हुई बगावत के वक्त भी भाजपा के साथ थे।

2018 के चुनाव के बाद 230 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस की 114, भाजपा की 109 सीटें थीं। दो सीटें बसपा, एक सीट सपा और चार निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई थीं। 2020 में सिंधिया समर्थक विधायकों के पाला बदलने के वक्त अपनी सीटों से इस्तीफा दे दिया था।

इसके बाद नवंबर 2020 में 28 सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से 19 भाजपा के खाते में गईं। वहीं, नौ सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। इसके बाद नवंबर 2021 में तीन और सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें से दो सीटें भाजपा और एक कांग्रेस ने जीती थी। इस वक्त 230 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 127, कांग्रेस के 96, निर्दलीय चार, दो बसपा और एक सपा के विधायक हैं।

2018 में मध्य प्रदेश के चुनाव नतीजे 11 दिसंबर को आए थे। ऐसे में चुनावों को अब आठ महीने का वक्त बचा है। इस चुनाव में भाजपा के सामने अपना किला बचाने की चुनौती होगी। वहीं, कांग्रेस 2020 में सत्ता से बेदखल होने का कसक दूर करना चाहेगी।

युवाओं की नारजागी दूर करने की कोशिश: राज्य में रोजगार जैसा मुद्दा भाजपा की परेशानी का सबब बन सकता है। यहां पिछले चुनाव के बाद लगभग तीन साल तक भर्तियां आरक्षण के मुद्दे पर अदालतों में रुकती रहीं। इसके कारण राज्य के में आए दिन बेरोजगार धरना-प्रदर्शन करते रहे।

हालांकि, दोबारा भर्तियां शुरू करके सरकार युवाओं के गुस्से को शांत करने की कोशिश में है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने एलान किया कि अगस्त 2023 तक एक लाख युवाओं को सरकारी नौकरियां दे दी जाएंगी।

आदिवासी और महिला मतदाताओ पर भाजपा की नजर: दूसरी ओर आदिवासी और महिला वोटरों को अपनी ओर लाने की कोशिश भी भाजपा कर रही है।

इसी कड़ी में जनजातीय गौरव दिवस के पर प्रदेश सरकार ने पेसा नियम अधिसूचित किए। वहीं महिला वोटर को साधने के लिए पांच मार्च को शिवराज सिंह ने लाड़ली बहना योजना शुरुआत की।

इस योजना में ढाई लाख से कम वार्षिक आय और पांच एकड़ से कम जमीन वाली महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए दिए जाएंगे। चुनावी जानकारों की मानें तो चुनावों में भाजपा को योजना का सीधा फायदा मिल सकता है।

कांग्रेस का कमलनाथ के चेहरे पर आगामी चुनाव लड़ना लगभग तय है। पार्टी ने लाडली बहना योजना के असर को समझते हुए कहा कि सत्ता में आने पर कांग्रेस महिलाओं को साल में 18 हजार रुपए देगी। इसके साथ ही कांग्रेस सत्ता में आने पर 500 रुपये में एलपीजी सिलेंडर देने का वादा कर रही है।

हारी सीटों को जीतने पर फोकस: चुनाव से पहले कांग्रेस पिछली बार हारी हुई सीटों पर भी विशेष मेहनत कर रही है। पिछली बार विंध्य क्षेत्र ने कांग्रेस की जीत में साथ नहीं दिया था। वो बीजेपी के साथ रहा था। इसलिए कांग्रेस अब यहां अपनी खोई हुई जमीन तलाश रही है।

यहां संगठन को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को सौंपी गई है, वो लगातार विंध्य का दौरा कर रहे हैं।

आप के राष्ट्रीय संगठन मंत्री संदीप पाठक के मुताबिक, आप प्रदेश की सभी 230 सीटों पर चुनाव लड़ेगी और अपना सीएम का चेहरा भी घोषित करेगी। बीते 14 मार्च को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान ने जनसभा के जरिए राजधानी भोपाल से चुनावी बिगुल फूंक दिया है।

इस दौरान केजरीवाल ने दिल्ली और पंजाब की तरह मध्यप्रदेश में भी सरकार में आने पर फ्री बिजली देने का वादा किया है। राज्य की राजनीति को समझने वाले कहते हैं कि आप का सीधी-सिंगरौली में संगठन बेहतर है।

इस इलाके में पार्टी अच्छा कर सकती है। बाकी, इलाकों में संगठन नहीं होने के चलते उसे मुश्किलें आ सकती हैं। चुनावों में आप किसका वोट काटेगी इसका असर भी नतीजों पर पड़ेगा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest News

Recent Comments