Musafir Hoon Yaaro: पत्रकार सुधीर मिश्र का यात्रा वित्तांत “मुसाफिर हूं यारो” हर-दिल-अज़ीज़ बन गया है। इस पुस्तक ने सामान्य पाठक से लेकर गंभीर पाठकों के दिलों में अमिट छाप छोड़ी है।
सुधीर मिश्र के यात्रा वित्तांत “मुसाफिर हूं यारो” का लोकार्पण लखनऊ में 19 अगस्त को होगा। ये समारोह गोमती नगर के विराजखंड स्थित यूनिवर्सल बुक शॉप परिसर में शाम 5 बजे से शुरू होगा। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार जे. पी. शुक्ल और नवीन जोशी समेत शिक्षा, साहित्य और मीडिया जगत की हस्तियां शामिल होंगी। यहीं मंच पर ही इतिहासकार और लेखक रवि भट्ट मुसाफिर हूं यारो के लेखक सुधीर मिश्र के साथ संवाद करेंगे।
दिल से करीब का रिश्ता बनाकर लिखी गई पुस्तक मुसाफिर हूं यारो (Musafir Hoon Yaaro) में लिखी गई लाइनों पर ग़ौर फरमाइए।
इस पुस्तक मुसाफिर हूं यारो में दिल को छू लेने वाली बेबाकी और सच्चाई है। पहले एक नज़र चंद पंक्तियों पर…
लेखक ख़ुद के बारे बगैर लाग-लपेट के बिंदास लिखता है…
“एक लोअर मिडिल क्लास का लड़का जो कभी ट्यूशन पढ़ाता तो कभी साइकिल पर लॉटरी बेचता तो कभी खस्ते-पूरी की दुकान खोल लेता।”
“एक लोअर मिडिल क्लास का लड़का जो कभी ट्यूशन पढ़ाता तो कभी साइकिल पर लॉटरी बेचता तो कभी खस्ते-पूरी की दुकान खोल लेता।”
अपनी पहली विदेश यात्रा का ज़िक्र कुछ इस तरह से – जब जहाज़ कुछ हवा में झटके लेने लगता है, “मैंने ईश्वर को याद किया। भगवान ने तुरंत अपना प्रभाव दिखाया, झटके बंद हो गए।”
“मैंने ईश्वर को याद किया। भगवान ने तुरंत अपना प्रभाव दिखाया, झटके बंद हो गए।”
लेखक पाठक को अपने साथ लेकर चलता है, यह तब देखने को मिलता है जब वह टोरंटो में इंटरनेशनल कॉंफ्रेंस का हिस्सा बनता है “हॉलीवुड के पॉपुलर एक्टर रिचर्ड गेर लोगों के बीच थे। सुधीर का मन किया, वह अपने साथ एक फोटो खिंचवाएं, पर कुछ हिचकिचाहट कि लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे! संभवत: यह आम आदमी की हिचकिचाहट थी, तभी रिचर्ड गेर को ना जाने क्या सूझी, उन्होंने मुखर्जी से कहा,” पीटर, वी शुड हैव वन फोटोग्राफ विद सुधीर।”
” पीटर, वी शुड हैव वन फोटोग्राफ विद सुधीर।”
इसी में आगे चलकर वो बिल क्लिंटन की प्रेस कॉफ्रेंस का ज़िक्र करते हैं।
“रिसेप्शन पर बैठा बंदा अमेरिकन अंग्रेज़ी में क्या गिटिर-पिटर कर रहा था, मैं कुछ समझ नहीं पाया। वह 10 दिन बाद चेक आउट करते समय पता चला कि फ्रीजर से जितना भी मैंने खाया-पिया था, उसका भुगतान मुझे अपनी ज़ेब से करना है।”
कोपेनहेगेन में यूनाइटेड नेशन की क्लाइमेट चेंज़ कॉंफ्रेंस में अपनी बेहतरीन रिपोर्ट पर पत्रकारिता जगत में हुई चर्चा को साझा करते हुए कहते हैं कि “ अगले दिन नेट पर जब यह ख़बर अंग्रेज़ी चैनलों और अख़बारों के साथियों ने देखी तो वे चौंक गए…हिंदी की ख़बर अंग्रेज़ी में फॉलो हो रही थी। आख़िर पठनीयता भी कोई चीज़ है।”
’मुसाफ़िर हूं यारो’ यात्रा संस्मरण की ख़ास बातें…
पठनीय और सार्थक रचना है ’मुसाफ़िर हूं यारो’
तथ्यात्मक, ज्ञानवर्धन और प्रेरणादायक है ये क़िताब
सामाजिक सरोकारों पर लेखक की बेबाक टिप्पणी
सभी वर्ग के पाठकों की भावनाओं के करीब है ये पुस्तक
एक युवा पत्रकार के संघर्षों की सच्ची कहानी है पुस्तक
हिंदी मीडियम वालों को इस किताब से मिल रही रोशनी
हरेक वर्ग के लिए ख़ास है Musafir Hoon Yaaro
कई जीवन के अनुभवों को समेटे है ’मुसाफ़िर हूं यारो’
किसी को भेंट और गिफ्ट देने लायक है ये पुस्तक
सुधीर मिश्र की पुस्तक मुसाफिर हूं यारो (Musafir Hoon Yaaro) से यारी करने वालों की एक लंबी फेहरिस्त है। इन लोगों ने ना सिर्फ सुधीर मिश्र के यात्रा वित्तांत (Travelogue) मुसाफिर हूं यारो से दोस्ती की है, बल्कि बेहतरीन कॉमेंट भी किए हैं।
किताबों पर पैनी नज़र रखने वाली ये वो विभूतियाँ हैं, जो किताबों से प्यार करती हैं। और उसकी तलहटी में गोते लगाती हैं। और अपनी असरदार टिप्पणी करती हैं।
किताब के बारे में जानेमाने आर्टिस्ट पंकज गुप्ता लिखते हैं … सुधीर भाई, इतना मज़ा आ रहा था पढ़ने में, लेकिन आखिरी पन्ना पलटने के बाद लगा कि अधूरा छोड़ दिया किताब को।
उम्मीद है कि इस कड़ी का आप भी हिस्सा बनेंगे। वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ये किताब आपको अमेज़न पर ऑनलाइन और अनेक बुक स्टॉलों पर मिल जाएगी। हाँ, #मुसाफ़िरहूंयारो किताब आपको कैसी लगी। ये पब्लिक को बताना मत भूलिएगा।
अधूरी क्यों लगती है Musafir Hoon Yaaro?
अधूरी क्यों? के सवाल पर सुधीर मिश्र कहते हैं कि हां, मुझे बताना चाहिए था कि अभी #मुसाफिरहूंयारो का दूसरा हिस्सा आना है, पर ये यात्रा तो अनवरत है तो उसके संस्मरण टुकड़ों में कैसे हो सकते हैं। हमें कुछ लिखने की ज़रूरत थी। उन्होंने कहाकि जब से धरती बनी है, जीवन अनवरत चल रहा है। धरती पर इंसानों ने बाज़ी मारी और औरों से मीलों आगे निकल गए। और ये सिलसिला बदस्तूर जारी है।
इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए अपने अंदाज़ में सुधीर खुद के बारे में बताते हुए कहते हैं कि यूपी के बरेली में पैदा हुआ। शाहजहांपुर में बचपन बिताया। और लखनऊ में पढ़ाई और फिर नौकरी की। इस बीच जॉब के लिए राजस्थान के शहर श्रीगंगानगर, जयपुर, उदयपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, बांसवाड़ा का सफ़र तय किया। मध्य प्रदेश के भोपाल, इंदौर और फिर लखनऊ होते हुए अब देश की राजधानी दिल्ली में ठौर मिला है। एक लंबी सी साँस लेते हुए वो कहते हैं कि करियर की इस यात्रा के बीच दुनिया भर की कई यात्राएं की और इसे आगे भी चलना है।
कलम के धनी पत्रकार सुधीर कहते हैं कि किसी एक की यात्रा दूसरों की यात्रा को काफी आसान बनाती है। हम सबको चीनी यात्री ह्वेनसांग- फाह्यान से लेकर राहुल सांकृत्यायन तक की यात्राओं ने बहुत सी अनदेखी यात्राओं का अनुभव कराया। अब मेरी यात्रा भी चल रही है, कुछ किताब में आ गई है और कुछ आगे मिलेंगी।
कहने का मतलब साफ है कि Musafir Hoon Yaaro पुस्तक एक पड़ाव है, इसकी भी यात्रा आगे जारी रहेगी।
मुसाफ़िर हूँ यारो टाइटल ही क्यों?
मुसाफ़िर हूँ यारो टाइटल ही क्यों? इस सवाल पर अपनी सदाबहार मुस्कान के साथ मिश्र कहते हैं कि बचपन में भूगोल पढ़ने का बेहद शौक़ था। क्लास में एटलस निकाल कर दुनिया भर की जगहों के नाम खोजने का खेल खेला करता था। कहते हैं ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’। पत्रकारिता ने घूमने के बहुतेरे अवसर दिए। और बचपन के सारे सवाल और जिज्ञासाओं के जवाब दुनिया भर में घूमकर तलाशे।
मुसाफ़िर हूँ यारो का लोकर्पण 19 अगस्त को
पत्रकार सुधीर मिश्र के यात्रा वित्तांत का लोकर्पण 19 अगस्त को होना है। लखनऊ के गोमती नगर के विराजखंड स्थित यूनिवर्सल बुक शॉप परिसर में ये समारोह शाम 5 बजे से शुरू होगा। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में वरिष्ठ पत्रकार जे. पी. शुक्ल और नवीन जोशी समेत शिक्षा, साहित्य और मीडिया जगत की बड़ी हस्तियां भी जुटेंगी। यहीं मंच पर ही इतिहासकार और लेखक रवि भट्ट मुसाफिर हूं यारो के लेखक सुधीर मिश्र के साथ संवाद करेंगे।