आतमजीत, अचला, मृदुला, मसूद व प्रो. मेहदी को मिला नौशाद सम्मान
लखनऊ, 18 जनवरी। Natak Kanjoos: मानवीय संवेदनाओं से हटकर दौलत के प्रति मोह और इंसानी हसरतों पर करारा व्यंग्य करते नाटक कंजूस का मंचन नौशाद संगीत डेवलेपमेंट सोसाइटी ने अतहर के निर्देशन में आज शाम वाल्मीकि रंगशाला गोमतीनगर में किया गया। इस अवसर पर प्रतिष्ठित नौशाद सम्मान भी प्रदान किये गये।
संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली के रंगमण्डल अनुदान के तहत नाट्य मंचन से पहले नौशाद संगीत सम्मान से नौटंकी विशेषज्ञ आतमजीत सिंह, रंगनेत्री अचला बोस व मृदुला भारद्वाज, अभिनेता नवाब मसूद अब्दुल्लाह तथा प्रो. फरजाना मेहदी जी को अलंकृत किया गया। सम्मान अतिथियों के तौर पर न्यायमूर्ति मनीष कुमार, जस्टिस आलोक माथुर, जस्टिस संगीता चन्द्रा और इरा चिकित्सा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.अब्बास मेंहदी ने प्रदान किये।
फ़्रेंच नाटककार मौलियर द्वारा सत्रहवीं सदी में लिखे इस नाटक के हजरत आवारा के मुस्लिम परिवेश में किये रूपांतरण के केन्द्र में एक कंजूस लेकिन रईस विधुर मिर्जा सखावत बेग और उसका बेटा मर्रुख और बेटी अजरा है। नाटक में कई दिलचस्प मोड़ आते हैं, जो देखने वालों को लगातार बांधे रखकर हंसाते हैं।
कंजूस पिता बेटी की शादी एक अमीर लड़के से करना चाहता है। लेकिन बेटी अजरा एक साधारण लड़के नासिर से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है। वहीं कंजूस का बेटा अपने से उम्र में बड़ी औरत मरियम से शादी की इच्छा रखता है, जबकि मिर्जा खुद मरियम से निकाह करना चाहते हैं।
मिर्जा के घर में इन तीनों के अतिरिक्त कजरा के प्रेमी नौकर नासिर, कोचवान व बावर्ची अल्फू के साथ नम्बू नौकरी करते हैं। स्वभाव से कन्जूस होने के साथ-साथ शक्की मिज़ाज के मिर्जा ने घर के बगीचे की जमीन में दस हजार अशर्फियां दबाकर महफूज रखी हैं। मिर्जा को हमेशा इस बात का डर रहता है कि नौकर कहीं उसकी रकम चुरा न ले।
इधर फर्रुख और अजरा अपने-अपने मोहब्बत की दास्तान सुनाकर शादी की योजना बनाते हैं। इसी बीच मिर्जा वहाँ पहुँचकर मरियम से अपनी शादी के बारे में फर्रुख और अजरा से राय पूछता है। यह जानकर फर्रुख मियां के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। बाप-बेटे में खूब कहा सुनी होती है। लेकिन मिर्जा अपने इरादे से टस से मस नहीं होते। साथ ही मिर्जा अपनी बेटी अजरा का निकाह असलम साहब के साथ करवाने की जिद पर उतर आते हैं।
मिर्जा मरियम से निकाह करने से पहले उससे मिलने की ख्वाहिश जाहिर करता है तो फरजीना मरियम को दिखाने साथ लेकर मिर्जा के घर पहुंचती है। लेकिन मिर्ज़ा के बेटा फर्रुख इस निकाह से नाखुश रहता है। ऐसी स्थिति में मिर्जा अपने बेटे फर्रुख से झूठ बोलकर मरियम से उसके मोहब्बत का राज उगलवा लेता है। यहीं बाप-बेटे की नोंक-झोंक के बीच मिर्जा को पता चलता है कि उसकी अशर्फियां चोरी हो गयीं।
मिर्जा पागलों की तरह आग बबूला होकर घर में हुई चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा देता है। विषम परिस्थितियों से गुजरते नाटक में असलम साहब का प्रवेश एक नया मोड़ लेता है। असलम के आने पर राज खुलता है कि नासिर और मरियम दोनों असलम साहब के एक समुद्री तूफान में बिछड़ गये बेटे-बेटी हैं।
असलम साहब बेटे नासिर की शादी अजरा से और फर्रुख की शादी मरियम से तय करा देते हैं। अपनी अशर्फियां वापस पाने की भूख में मिर्जा की जिद छोड़ शादियों के लिये राजी हो जाता है। साथ ही असलम साहब मिर्जा अकेला न रहे, मिर्जा का निकाह फरजीना से तय कर देता है। यहीं नाटक का समापन हो जाता है। यह नाटक चन्द्राणी मुखर्जी के निर्देशन में चली 60 दिवसीय कार्यशाला में अतहर नबी के निर्देशन में तैयार किया गया।
नाटक में नासिर की भूमिका में सौरभ सिंह और अजरा की भूमिका में मुस्कान सोनी के साथ फरूख- मोहित यादव, मिर्जा सखावत बेग- अशोक लाल, नम्बू- तारिक इकबाल, दलाल- प्रणव श्रीवास्तव, अल्फू कोचवान- अरुण कुमार विश्वकर्मा, फरजीना- नीतिका मेहता, मरियम- जारा हयात, हवलदार- आदर्श तिवारी, असलम- आनन्द प्रकाश शर्मा बने थे।
पार्श्व पक्षों में संगीत संचालन- श्रद्धा बोस, प्रकाश परिकल्पना- विजय मिश्र, रूपसज्जा- विश्वास वैश्य के अतिरिक्त कौसर जहाँ तथा कमर सुल्ताना का था। अब्दुल मारूख के डिजाइन किये सेट को कैलाश काण्डपाल और मुहम्मद याहया ने तैयार किया। मंच व्यवस्था शरवीना फातिमा का था, अन्य पक्ष में सभ्यता भारती, बानी मुखर्जी और प्रभात कुमार बोस का सहयोग रहा।