Parali Burning Effect: पंजाब की आप और हरियाणा की बीजेपी सरकार पराली जलाने को लेकर डींगे हाँकती हैं। मगर पंजाब और हरियाणा में धान के खेतों में खुलेआम पराली जला दी जाती है। नतीजतन दिल्ली-एनसीआर का AQI (Air Quality Index) ख़तरनाक लेवल तक पहुंच जाता है। बीते नवंबर-दिसंबर में दिल्ली-एनसीआर में AQI का स्तर 263 तक पाया गया।
पंजाब की मान सरकार और हरियाणा की खट्टर सरकार की सख्ती के दांवों के बीच पराली का ख़तरा बढ़ जाता है। इन दोनों राज्यों के किसान खुले मैदानों में पराली जला देते हैं। खेतों में जलती पराली से उठने वाला ये धुआं पंजाब, हरियाणा सहित दिल्ली-एनसीआर के लोगों की साँसों के लिए घातक होता है। इससे साँस और त्वचा संबंधी बीमारियों की संख्या में बढ़ेतरी हो जाती है।
पंजाब की बात करें तो वहां पराली के कम जलाने के दावे हो रहे हैं, मगर ये सिलसिला थमता नहीं है। यहां खुलेआम पराली जलाई जाती है। किसान पराली को आग के हवाले करके चंपत हो जाते हैं, ताकि उनके ऊपर कोई न हो सके।
गौर करें तो पंजाब और हरियाणा के कुछ किसान ऐसे भी हैं जो पराली को आग लगाने की बजाय उसका प्रबंधन करने में विश्वास रखते हैं। पंचकूला के कई गांवों में किसान सुपर सीडर मशीन के जरिए पराली को खेतों में ही खाद की तरह इस्तेमाल करने लगे हैं। ये किसान सीधे गेहूं के बीज की बुवाई कर रहे हैं।
इन किसानों का कहना ही कि ये मशीनें मंहगी होती हैं। सामान्य किसान इन महंगी मशीनों को खरीद नहीं सकता है। वो पराली का प्रबंधन नहीं कर पाता है। और ये किसान पर्यावरण, प्रदूषण की परवाह किए बगैर खेतों में पराली में आग लगा देते हैं।
किसानों की शिकायत ये है कि सरकार को इसके लिए किसानों की मदद करनी चाहिए। उन्हें मशीनें खरीदने और पराली के लिए प्लांट लगाने के लिए सहयोग करने के लिए नई योजनाएं लेकर आने चाहिए। सब्सिडी देनी चाहिए।
बता दें कि पिछले साल 2022 की तुलना में इस साल 2023 पंजाब में पराली जलाने के मामलों में कमी आई है। राज्य में अब तक 1764 जगहों पर पराली जलाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। ये आंकड़े पिछले 2 साल में सबसे कम हैं। इसी अवधि में अब तक 2021 में 4327 और 2022 में 3114 मामले रिकॉर्ड किए गए थे।
वहीं हरियाणा में 2023 में पराली जलाने के 714 मामले आएं। बीते साल 2022 में 893 मामले सामने आए थे। अगर दोनों राज्यों की मान और खट्टर सरकारें किसानों को जागरूक करके किसानों को संसाधन उपलब्ध कराएं, तो पराली की समस्या से निजात मिल सकती है। और प्रदूषण की समस्या से भी काफी हद तक निजात मिल सकती है।
धान की फसल कटने के बाद बचे हुए हिस्से को पराली (Parali), कहते हैं। जान लें कि पहले किसान अपनी फसल को खुद या मज़दूरों से कटवाते थे। वैसे में फसल का थोड़ा हिस्सा खेतों में रहता था। इसे जलाने की ज़रूरत नहीं होती थी, लेकिन हाल के दिनों में और ख़ासकर पंजाब और हरियाणा में धान की फसल (Paddy Crop) की कटाई आधुनिक मशीनों से की जा रही है।
ये मशीनें फसल का सिर्फ ऊपरी हिस्सा काटती हैं, बाकी का हिस्सा ज़मीन में ही रह जाता है। ऐसे में किसान दूसरी फसल की बुआई के लिए किसान पराली को काटने की बजाय खेतों में ही जला देता है। वैसे तो हर साल अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में पराली खूब जलाई जाती है।
भारत में खेत में पराली जलाना, भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (IPC 188) के तहत गैर कानूनी किया गया है। दोषी पाए जाने पर इस धारा के तहत 6 महीने की सज़ा या 15 हजार रुपए का जुर्माना का हो सकता है।