Sea Bass Fish: देश में बढ़ती आबादी, बेरोजगारी और पौष्टिक आहार की कमी को देखते हुये मत्स्य पालन का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है और बढ़े भी क्यों नहीं, क्योंकि यह कम लागत में ज्यादा मुनाफा देने वाला व्यवसाय है.
मछली पालन एक तरह की जलीय खेती है इस जलीय खेती में तालाब, खेत है,,मछली का जीरा, बीज और मछली, फसल है,,जिस तरह से खेत में फसल उगाने के लिए अच्छी क्वालिटी के बीज, सही मिट्टी, उचित मात्रा में जल, खाद और देखरेख की जरूरत पड़ती है,, ठीक उसी तरह से सफल मछली पालन के लिए भी तालाब की मिट्टी, जीरा, खाद, पूरक आहार का अच्छा होना जरूरी है.
साथ ही साथ मछलियों की समय-समय पर उचित देखरेख करना भी महत्वपूर्ण है,,मछली पालन व्यवसाय की शुरुआत करने में अधिक पूंजी की जरूरत नहीं होती है,,इसकी शुरुआत छोटे और बड़े दोनों पैमाने पर की जा सकती है.
इसके लिए सरकार की तरफ से भी सहायता प्रदान की जाती है,, तो सबसे पहले आज हम बात करने जा रहे हैं, सीबास मछली पालन के बारे में,, सीबास मछली, मछली की ही एक प्रजाति है,, जिसे समुद्री मछली की श्रेणी में रखा गया है,,समुद्री बास मछली, जिसे तमिल में कोडुवई भी कहा जाता है.
यह भारतीय व्यंजनों का एक अभिन्न अंग है,, उष्णकटिबंधीय समुद्र के उथले क्षेत्रों में पाये जाने वाले इस मछली परिवार में लगभग 475 प्रजातियाँ शामिल हैं, जो ज्यादातर भोजन के लिए जानी जाती हैं,,तमिलनाडु सहित भारत के कई तटीय क्षेत्रों में, यह एक व्यापक रूप से प्रसिद्ध पसंदीदा व्यंजन है, क्योंकि सीबास मछली स्वाद में हल्की मीठी होने के साथ उच्च वसायुक्त और पूर्ण मांसल होती है,,जिस कारण इस मछली की अधिक डिमांड रहती है,,जिसको देखते हुए इसका बाजार भाव भी अच्छा मिल जाता है.
यह मछली कई रंगों की किस्मों में पायी जाती है,, लेकिन अधिकतर यह धुंए वाले सलेटी रंग से लेकर काले भूरे रंग या नीले काले रंग में पायी जाती है,,इस मछली का शरीर बहुत ही मजबूत होता है, इसके पंख लंबे होते हैं, जबकि इसका मुंह तिरछा और आंखें ऊपर की तरफ उभरी हुई होती हैं, गलफड़ों के बाहरी किनारों पर एक समतल कांटा होता है,,सीबास मछली मीठे और खारे दोनों तरह के पानी में आसानी से पाली जा सकती है.
आमतौर पर वह भूमि जो खेती-बाड़ी के लिए अच्छी नहीं होती, उसे फिश फार्म बनाने के लिए उपयोग किया जाता है,,फिश फार्म के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए, जैसे भूमि में पानी को रोककर रखने की क्षमता होनी चाहिए,, रेतीली और दोमट भूमि पर तालाब ना बनायें.
यदि आप मिट्टी की जांच करना चाहते हैं तो भूमि पर 1 फीट चौड़ा गड्ढा खोदें और इसे पानी से भरें, यदि गड्ढे में पानी 1-2 दिनों के लिए रहता है तो यह भूमि मछली पालन के लिए अच्छी है,,, लेकिन यदि गड्ढे में पानी नहीं रहता है, तो यह भूमि मछली पालन के लिए अच्छी नहीं है,, सीबास मछलियों का पालन तटीय क्षेत्रों में सामान्य तालाब में किया जाता है.
वहीं इस मछली का पालन सघन तकनीक (केज और आर.ए.एस. तकनीक) से करके कम जगह में अधिक मछलियों को आसानी से पाला जा सकता है,, आर.ए.एस. तकनीक में सीमेंट के टैंक बनाकर मछलियों का पालन कर सकते हैं.
रीसर्क्युलेटिंग एक्वाकल्चर सिस्टम (आर.ए.एस) में तापमान नियंत्रक लगा होता है, जो तापमान को नियंत्रित करता है, जिससे मछलियों पर सर्दी और गर्मी का कोई असर नहीं पड़ता है,,अगर आप इस मछली का बीज उत्पादन करने के साथ ग्रोवर मछलियों का भी पालन करना चाहते हैं, तो आपको हैचरी टैंकों की भी व्यवस्था करनी होगी,,अगर आपका टैंक 6 मीटर व्यास का है, तो इसमें 7 – 8 सेमी. का आकार की 1500 से 1700 की संख्या में अंगुलिकाओं का संचय करें,,जिससे आपको लगभग 3 टन उत्पादन मिलेगा.
इन मछलियों को बाज़ार में उपलब्ध आहार फीड पैलेट के रूप में दिया जाता है,, गीला पैलेट और शुष्क पैलेट,, गीले पैलेट में, फीड को सख्त बनाने के लिए कार्बोक्सी मिथाइल सैलूलोज या जेलेटिन डाला जाता है और बाद में इसे बारीक पीसकर पैलेट्स में तैयार किया जाता है,, यह स्वस्थ होता है पर इसे लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता है,,वहीं सूखे पैलेट को लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है,, सीबास मछलियों को दिन में दो बार फ्लोटिंग फीड उसके 3 से 5 प्रतिशत शरीर भार के अनुसार दिया जाता है.
इसके अलावा टैंक में पानी की क्वालिटी अच्छी बनी रहे इसके लिये ग्रोथ प्रमोटर और दवाईयों का उपयोग किया जाता है,,और मछलियों को ऑक्सीजन के लिए टैंक में एरियेटर लगे होते हैं,,साथ ही मछलियों के मल को टैंक से बाहर निकालने के लिए मैकेनिकल फिल्टर लगे होते हैं, और अपशिष्ट पदार्थों को टैंक से बाहर निकालने के लिए बॉयोलोजिकल फिल्टर लगे होते हैं,,जिसके माध्यम से अपशिष्ट पदार्थों को टैंक से बाहर निकाला जाता है.
अब बात करते हैं, सीबास मछलियों में लगने वाली बीमारियों की,, तो इन मछलियों में पूंछ और पंखों के गलने की समस्या देखने में आती है,,जिसमें पंखों के कोने हल्के सफेद रंग के दिखते हैं और फिर यह पूरे पंखों पर फैल जाते हैं और बाद में ये गिर जाते हैं,, इसलिये इस बीमारी से ग्रसित मछलियों को कॉपर सल्फेट 0.5 प्रतिशत के घोल में 2-3 मिनट तक पानी में डुबोकर रखें,,जिससे आप इस बीमारी की रोकथाम कर सकते हैं.
इसके अलावा इन मछलियों में जो दूसरी सबसे घातक बीमारी अधिक देखने में आती है, वह है एपिज़ूटिक अल्सरेटिव सिंड्रोम (ई.यू.एस),, जो रबडोवायरस, जीवाणु एरोमोनास हाइड्रोफिला और कवक एफानोमाइसेस इनवेडांस के संयोजन के कारण होती है,, इस बीमारी में मछली के शरीर पर फोड़े, चमड़ी और पंखों का खुरना, जिससे मछली की मृत्यु तक हो जाती है,, तो इस घातक बीमारी से मछली को बचाने के लिए आप सीफैक्स दवा का प्रयोग करें,, जिससे इस बीमारी से आप अपनी मछलियों को बचा सकते हैं.
जहां तक सीबास मछली पालन से होने वाले कुल लाभ की बात है, तो 6-8 माह में 1 से 2.25 कि.ग्रा. की मछलियां बाजार में बेंचने योग्य तैयार हो जाती है,, इस तरह 6 मीटर के व्यास वाले टैंक से कुल लगभग 3 टन सीबास मछलियों का उत्पादन होता है,, और जहां तक बाजार भाव की बात है, तो यह मछली औसतन 350-400 रूपये प्रति किलो की दर से बिकती है,, इस तरह से 3 टन सीबास मछलियों से 11,25,000 रूपये की कुल आमदनी होगी,, और अगर आप 8 से 10 टैंक में इस मछली का उत्पादन करते हैं, तो आप इस व्यवसाय से एक वर्ष में करोड़ों की कमाई कर सकते हैं।
- अनुग्रह तिवारी