Urmil Rang Mahotsav: राजा हो तो भर्तृहरि जैसा और स्त्री हो तो देशहित चाहते वाली चम्पा जैसी। एक करुणामय प्रजा पालक राजा और एक देशभक्त ममतामयी नारी के भावों को दर्शाने वाली लेखक हुकुमचन्द वार्ष्णेय की लिखी नौटंकी महाराजा भर्तृहरि को बुन्देलखण्ड लोक कला संस्थान बांदा के कलाकारों ने विजय बहादुर श्रीवास्तव की परिकल्पना, संपादन व निर्देशन में आज शाम मंच पर उतारा।
उर्मिल रंग महोत्सव के तीसरे दिन संत गाडगेजी महाराज प्रेक्षागृह गोमतीनगर मंच पर उतरी ये नौटंकी आज भी नवीनता लिये हुये प्रेरणादायी और प्रासंगिक दिखी।
राजपाट और वैराग्य दोनों स्थितियों में कल्याण ही भर्तृहरि के सम्पूर्ण जीवन का मूल सिद्धान्त था। प्रस्तुति उज्जैन के राजा भर्तृहरि के त्याग और वैराग्य की कहानी के साथ वेश्या चम्पा की भावना दर्शाती है कि वेश्या होने और समाज से तिरस्कृत रहने के बावजूद उसके मन में शासक के प्रति, देश की अखंडता के प्रति, राष्ट्रीय भावधारा के प्रति कितना असीम लगाव है और इस तरह वह रानी से भी कितनी बड़ी और ऊँची है।
चम्पा वेश्या अपने प्रेमी से प्राप्त अमरफल को राजा तक इसलिये पहुंचाती है कि न्यायप्रिय तथा कुशल राजा अमरत्व को प्राप्त कर लें और जनता को निरन्तर सुख-वैभव मिलता रहे। राजा उस फल को देखते ही आश्चर्य चकित हो जाता है।
पिंगला रानी का कपट-पूर्ण प्रेम-व्यवहार तथा दारोगा की चालबाजी का मुखौटा उतर जाता है और भाई विक्रम के प्रति राजा की भावना पूर्ववत् हो जाती है। वह प्रायश्चित करता है और राजपाट तथा सांसारिक जीवन के प्रति वैराग्य हो जाता है।
मन्त्री को अपने भाई विक्रम के ढूंढ़ने का आदेश देकर वह बाबा गोरखनाथ की शरण में जाता है। परीक्षा की स्थिति में भी राजा अपनी दृढ़ निर्णय शक्ति का परिचय देता है।
विक्रम भी भरत समान तपस्वी-साधक भ्राता का परिचय देता है। राजा वैराग्य की स्थिति में अपने अनुभवों को संस्कृत श्लोकों में उतारता है। आज भी देश-विदेश के विश्वविद्यालयों में उनके श्लोक पढ़ाए जा रहे हैं।
कानपुर और हाथरस दोनों ही शैलियों की गायकी के प्रयोग वाली डा.उर्मिल कुमार थपलियाल फाउंडेशन द्वारा आयोजित रंग उत्सव की इस नौटंकी प्रस्तुति में भतृहरि का चरित्र संतोष निषाद ने जिया।
साथ ही रंगा व विक्रमादित्य का चरित्र बाबू निषाद, समर सिंह व औघड़नाथ का इन्द्रराज खंगार, साधू व गोरखनाथ का कल्लू यादव, पिंगला का ऊषा देवी, चम्पा का अभिलाषा, मंत्री का बदलू और द्वारपाल का चरित्र सुखराम मूरत ने निभाया। रूप सज्जा नेहा की रही।
हारमोनियम पर गरीबचन्द, नक्कारे पर राजाराम, ढोलक पर अरविन्द कुमार व मंजीरे पर प्रेमचन्द श्रीवास थे। प्रस्तुति में बहुत समय बाद पैरों से हवा भरकर बजाया जाने वाला हारमोनियम भी इस्तेमाल होते दिखा।पात्रों का परिचय नंदिनी मिश्रा ने कराया।
मुख्य अतिथि के तौर पर लोक जनजाति कला एवं संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी उपस्थित थे।