वैसे तो उरई-कालपी से अपना नाता तीन दशक पुराना है। किताबी ज्ञान की परिधि लांघकर कालपी से सीधा परिचय उरई से लौटते समय इस बार ही हुआ। पौराणिक और ऐतिहासिक नगरी कालपी वेदों और पुराणों में ‘छोटी काशी’ के रूप में भी जानी जाती है। कभी ‘कल्पित नगर’ के नाम से जानी जाने वाली यह नगरी अपभ्रंशों के बीच कालपी पर आकर विराम पाई है। उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण नगर कानपुर से महज 70 किलोमीटर दूर स्थित यह स्थान पर्यटन नक्शे पर नजर आता है, लेकिन पर्यटन की दृष्टि से आने वालों को यह नगरी निराश ही करती है।
यमुना के पावन तट पर पाराशर ऋषि के पुत्र के रूप में वेदव्यास को जन्म देने से लेकर महर्षि वेदव्यास बनाने तक में इस स्थान का महत्वपूर्ण योगदान है। चार वेद, छह शास्त्र और 18 पुराणों के रचयिता महर्षि वेदव्यास की जन्म और तपोस्थली पर माथा टेकने का सुयोग उरई के अपने पत्रकार मित्र विमल पांडेय और कालपी के पत्रकार दीपू चौहान के मार्फत आज बन पाया। माना जाता है कि महर्षि वेदव्यास ने ही संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। इसी दिव्य दृष्टि से उन्होंने महाभारत का सारा हाल धृतराष्ट्र को सुनाया था।
छोटी काशी के रूप में जाने जाने वाले इस क्षेत्र में 300 से अधिक प्राचीन शिव मंदिर आज भी विराजमान हैं। पाराशर ऋषि, सुखदेव ऋषि आदि से जुड़े स्थान इस क्षेत्र के महत्व को प्रमाणित करते हैं।
कालपी की संकरी सड़कों से गुजर कर देवकली आदि गांवों को जाने वाली टूटी-फूटी सड़क के किनारे महर्षि वेदव्यास की तपोस्थली पर मंदिर एक ऊंचे टीले पर स्थित है। इसे व्यास टीला कहा जाता है। इस टीले को तपोस्थली मानकर पूजा अर्चना का विधान तो सैकड़ो वर्षों से चला आ रहा था, लेकिन मंदिर का निर्माण 70 वर्ष पहले यहां के महंत श्री श्री 1008 स्वामी मनोहर दास जी महाराज के प्रयासों से उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल कन्हैयालाल जी ने संपन्न कराया।
Kalpi: वर्तमान में मंदिर की पूजा अर्चना का प्रभार संभाले श्री श्री 1008 स्वामी हरिहर दास जी महाराज बताते हैं कि मंदिर में व्यास जी की मूर्ति 1973 में तत्कालीन राष्ट्रपति वीवी गिरि के प्रयासों से प्राण प्रतिष्ठित हुई। यमुना की धारा से टीले के क्षरण को रोकने के लिए 1993 में तत्कालीन राज्यपाल बी सत्यनारायण रेड्डी ने पीले के इर्द-गिर्द 500 ट्रक बोल्डर लगवाकर मंदिर सुरक्षित करने की कोशिश की थी।
Kalpi: यमुना के किनारे टीले के नीचे महर्षि वेदव्यास के जन्म स्थान पर विशाल परिधि में बाल व्यास मंदिर का निर्माण करीब 20 वर्ष पहले दक्षिण के एक धार्मिक ट्रस्ट ने कराया था। इस मंदिर के बीचों-बीच ऋषि पाराशर और उनकी ऋषि पत्नी की आकर्षक मूर्तियां विराजमान हैं। ऋषि पत्नी की गोद में महर्षि वेदव्यास बाल रूप में प्रतिष्ठित हैं। मुख्य मंदिर के चारों तरफ विभिन्न देवी देवताओं के स्थापित मंदिर भी दर्शनीय हैं। गुरु द्रोणाचार्य की तपोस्थली पातालेश्वर महादेव मंदिर, बिहारी जी का मंदिर और 84 गुंबद भी कालपी की प्रमुख पहचानों में एक है।
यमुना की कटान रोकेगा 21 करोड़ से बन रहा तटबंध
स्थान की महत्ता को देखते हुए यहां उत्तर प्रदेश पर्यटन ने विभाग ने बोर्ड तो लगा दिए हैं लेकिन पर्यटन जैसा कुछ नजर नहीं आता। योगी सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री और उरई से ताल्लुक रखने वाले स्वतंत्र देव सिंह ने जरूर पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों को यमुना की कटान से बचाने के लिए 21 करोड़ की लागत से तटबंध स्वीकृत किया है। इस पर काम भी तेजी से चालू है। महर्षि वेदव्यास की जन्म और तपोस्थली से जोड़ने वाली सड़क का निर्माण भी दो करोड़ की लागत से प्रस्तावित चल रहा है पर अभी काम शुरू होने में कुछ देर है।
अथ श्री व्यास गंगा कथा
Kalpi: महर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली के ठीक नीचे व्यास गंगा नदी बहती है। नदी कम नाले के रूप में दिखने वाली इस नदी का उद्गम व्यास जी के हाथों ही हुआ माना जाता है। कहा जाता है कि महर्षि वेदव्यास प्रतिदिन गंगा स्नान करने कई कोस दूर जाते थे। उनकी ‘स्नान साधना’ की मुश्किलों को दूर करने के लिए ही मां गंगा ने प्रकट होकर भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले वेदव्यास से कहा कि कमंडल में मेरा जल ले जाकर अपने जन्म स्थान पर गिरा दीजिए। मैं वहीं पर प्रकट हो जाऊंगी। उनके ऐसा करते ही कमंडल से गिरा जल नदी की जलधार में बदल गया। कालांतर में इस जलधार को ही ‘व्यास गंगा’ कहा जाने लगा। पत्रकार दीपू चौहान बताते हैं कि पहले विकास गंगा का यमुना में संगम महर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली के पास ही होता था लेकिन अब यमुना की जलधारा दूर हो जाने की वजह से व्यास गंगा का यमुना से संगम 2 किलोमीटर दूर होने लगा है।
प्रथम स्वाधीनता संग्राम की यादें भी समेटे है कालपी
Kalpi: महर्षि वेदव्यास की जन्मस्थली के रास्ते में ही नजर के एक ऐसे बोर्ड पर पड़ती है, जिसमें लिखा रहता है झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का ‘मंत्रणा कक्ष’ या कोषागार। बमुश्किल एक किलोमीटर दूर यमुना के किनारे कालपी के सबसे ऊंचे स्थान पर एक ऐतिहासिक इमारत दिखाई देती है। यह इमारत वर्तमान में वन विभाग के अधिकार में है।
Kalpi: इमारत की दीवार पर स्थित एक शिलालेख के मुताबिक, आयताकार यह भवन चंदेल राजाओं के दुर्ग का भग्नावशेष है। भरहठों के शासनकाल में यह राज्यपाल का कोषागार हुआ करता था। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के समय झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, पटना के राजा कुंवर सिंह, बिठूर के नाना साहब पेशवा और तात्या टोपे ने यहां गुप्त मंत्रणा के बाद अंग्रेजी फौजों का डटकर मुकाबला किया था। स्वाधीनता संग्राम के इतिहास से जुड़े इस स्थान को भारतीय सम्मान की दृष्टि से आज भी देखते हैं लेकिन सरकारों की ओर से इसे ‘उचित सम्मान’ आज तक प्राप्त नहीं हो पाया है।
इस भवन की बाई तरफ स्थित कुएं (जिसे अब लोहे के जाल से बंद कर दिया गया है) की आज तक गहराई नापी नहीं जा सकी है। इस कुएं से लगी ही एक सुरंग भी पाई गई थी। इतिहास में दर्ज है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी से लेकर इस भवन तक एक सुरंग का निर्माण सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कराया था। हालांकि इस सुरंग को अब बंद कर दिया गया है।
पौराणिक स्थलों का ‘पुरातात्विक’ महत्व क्यों नहीं?
कालपी में पातालेश्वर मंदिर के बगल में ‘ब्रिटिश सिमेट्री’ स्थित है। यहां 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में भारतीय शूरवीरों के हाथों मारे गए अंग्रेजी फौजों के मारे गए 17 सैनिकों की कब्रें बनी हुई हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग में अंग्रेजी सैनिकों से जुड़े इस स्थान को पुरातात्विक महत्व का मानते हुए सुरक्षित कर लिया है लेकिन कालपी के पौराणिक स्थलों को उसने आज तक पुरातात्विक महत्व का दर्जा नहीं दिया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण स्थानीय लोग ही नहीं यहां आने वाले पर्यटक भी अचंभित दिखते हैं।
Kalpi: पत्रकार विमल पांडे कहते हैं कि कालपी क्षेत्र को पर्यटन स्थल के रूप में अगर विकसित कर दिया जाए तो बड़ी संख्या में पर्यटक इस पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों को देखने पहुंच सकते हैं, लेकिन सरकारी और विभागीय उपेक्षा पर्यटकों कि इस मंशा को पूरा नहीं होने दे रही है। वह बताते हैं कि अपने अखबार में ‘कालपी मांगे अपना अधिकार’ से लगातार 40 दिन तक एक सीरीज़ चलाई, लेकिन उपेक्षा का भाव रखने वाली सरकार पर इसका भी कोई असर नहीं हुआ।
– गौरव अवस्थी
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