Sone Ka Hiran: सीता ने सोने के हिरण को देखकर अपने पति राम से कहा, “प्रभु, इस हिरण को देखकर मेरा मन इसकी सुंदरता में खो जाता है। इसकी आँखें मासूम और मनमोहक हैं। इसका रूप और गति अद्भुत है। इस पर राम ने कहा, “सीता, यह मृग शायद कोई मायावी रूप में आया है। जीवन में भी इस तरह के मोड़ आते हैं। इस पर कई लोगों ने प्रतिक्रियाएं भेजी हैं। कुछ लोगों के विचार मैं शामिल कर पाया हूं।
अब टॉपिक की बात करते हैं तो विषय था-सीता को पता था कि सोने का मृग नहीं होता है, फिर भी वो उसे पाने के लिए व्याकुल हो गईं। … इस पर जानेमाने मीडिया क्रिएटर मुकेश सैनी ने अपने विचार प्रेषित किए हैं।
“यह सच है कि सीता जैसी विदुषी और पवित्र महिला जानती थीं कि सोने का हिरण नहीं होता। लेकिन यहां कहानी का उद्देश्य एक प्रतीकात्मक संदेश देना है। सोने का हिरण माया (भ्रम, आकर्षण) का प्रतीक है। रामायण के माध्यम से यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि माया कितनी आकर्षक और शक्तिशाली हो सकती है कि वह बुद्धिमान और गुणी लोगों को भी अपने जाल में फंसा सकती है।” – मुकेश सैनी
इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार पीयूष त्रिपाठी ने स्वर्ण मृग प्रसंग खुलकर अपने विचार रखे हैं। वो कहते हैं कि … राम के वनवास के समय पंचवटी में अपने नाक-कान कटने और खर-दूषण का वध होने के बाद शूर्पणखा बिलखती हुई रावण के पास लंका पहुंची और उसे सब हाल कह सुनाया। सारी घटना सुनकर रावण ने विचार किया कि खर-दूषण तो मेरे ही समान बलवान थे। उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है।
सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहॅऺ कोउ नाहीऺ ।।
खर-दूषन मोहि सम बलवंता । तिन्हहि को मारइ बिनु भगवंता ।।
आगे रावण कहता है कि
सुर रंजन भऺजन महि भारा। जौं भगवंत लीन्ह अवतारा।।
तौ मैं जाइ बैरु हठि करउऺ । प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊं।।
अर्थात यदि स्वयं भगवान ने ही अवतार लिया है तो मैं जाकर उनसे बैर करूंगा और प्रभु के बाण से प्राण छोड़कर भवसागर से तर जाऊंगा। इसी के बाद रावण मारीच के पास गया।
दूसरी ओर जब लक्ष्मण जी कन्द मूल फल लेने के लिए वन गये तब अकेले में प्रभु श्रीराम जी हंसते हुए सीता जी से बोले…
सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला। मैं कछु करबि ललित नरलीला।।
तुम्ह पावक महुऺ करहु निवासा। जौं लगि करौऺ निसाचर नासा।।
अर्थात हे प्रिए अब मैं कुछ लीला करूंगा। इसलिए जब तक मैं राक्षसों का नाश करूं, तब तक तुम अग्नि में निवास करो।
तब सीता जी अग्नि में समा गईं और अपनी छायामूर्ति वहां रख दी। लक्ष्मण जी को भी यह रहस्य नहीं पता था। उधर रावण मारीच के पास गया और उसे समझाया तो वह यह जानते हुए भी कि उसमें इसकी मृत्यु निश्चित है स्वर्ग मृग बनकर राम को छलने के लिए तैयार हो गया।
यह सब लीला थी। रावण के अंत के लिए विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया था। वहीं लक्ष्मी जी सीता के रूप में धरती से प्रकट हुई थीं। इस प्रसंग के पहले ही वह अग्नि में समा गई थीं और वहां छाया सीता थीं जिन्होंने राम को मृग के पीछे हठ करके भेजा। – पीयूष त्रिपाठी
अयोध्या के आचार्य स्वामी विवेकानंद रामचरित मानस के हवाले से बताते हैं कि सोने का मृग नहीं होता है। वह कहते हैं कि वो तो माया मृग था और मारीच ने ही रावण के कहने पर स्वर्ण मृग का रूप धारण किया था।
तेहि बननिकट दसानन गयऊ। तब मारीच कपटमृग भयऊ॥
अति बिचित्र कछु बरनि न जाई। कनक देह मनि रचित बनाई ॥
यानी जब रावण उस वन के पास पहुंचा, जिसमें राम रहते थे, तब मारीच कपटमृग यानी मायामृग या सोने का मृग बन गया। वह काफी विचित्र था, जिसका कुछ वर्णन नहीं किया जा सकता। उसने सोने का शरीर मणियों से जड़कर बनाया था। सीता के कहने पर राम इसी को ढूंढ़ने निकले थे।
इस विषय पर राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और समाजसेवी नवीन पनेरू (Navin Paneru) ने लिखा कि क्योंकि राम सीता काल्पनिक पात्र है। इस बात पर वरिष्ठ पत्रकार राम प्रकाश त्रिपाठी (Ramprakash Tripathy) कहते हैं कि
राम-सीता को काल्पनिक बताने वालों का हश्र देख लो। एक समूह हिंद महासागर में डूब रहा है और दूसरा पगला गया है।
विषय की बात करते हुए राम प्रकाश त्रिपाठी कहते हैं कि – होता नहीं, जो होता नहीं और हो जाए तो आश्चर्य होता है। रेगिस्तान में पानी नहीं होता लेकिन तापांतर से उल्टी छाया बनती है और लोग भ्रमित हो जाते हैं। उसी आश्चर्य ने मां सीता को प्रलोभित किया। हो सकता है माता सीता का मन ना विचलित होता तब प्रभु श्री राम ही स्वर्ण मृग के लोभ में आ जाते। प्रभु श्री राम का अवतार केवल रावण वध के लिए नहीं हुआ था। अवतार के अनेक हेतु एकत्रित हुए तब भगवान विष्णु ने प्रभु श्री राम के रूप में कौशल्या नंदन के रूप में अवतार लिया। मनु सतरूपा का तप, अहिल्या का उद्धार, सबरी की प्रतीक्षा, जटायु उद्धार के साथ ही कतिपय कारणों से राक्षस योनि में पड़े देवताओं और ऋषि-मुनियों को सद्गति देने के लिए उन्होंने मानव लीला दो बार की। रामकथा को केवल एक प्रसंग से समझेंगे और बिना संदर्भ और पूरे परिप्रेक्ष्य को विलोपित कर के चिंतन करेंगे तो लेख इसी पोस्ट की एक टिप्पणी की तरह हो जाएगा।
दोस्तों, मैंने अपने फेसबुक वॉल पर एक पंक्ति लिखी थी। विषय था- सीता को पता था कि सोने का मृग नहीं होता है, फिर भी वो उसे पाने के लिए व्याकुल हो गईं। … इस पर आई प्रतिक्रियाओं को मैंने इस लेख में समाहित किया है।