Earth Day 22 April: पृथ्वी और उस पर आश्रित प्राणियों को बचाने और दुनिया भर में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लक्ष्य के साथ 22 अप्रैल के दिन ‘पृथ्वी दिवस’ यानी ‘अर्थ डे’ मनाने की शुरुआत की गई थी। जिसे आज दुनिया भर में मनाया जा रहा है।
बता दें कि साल 1970 में शुरू की गई इस परंपरा को दुनिया ने खुले दिल से अपनाया और आज विश्व भर में प्रति वर्ष पृथ्वी दिवस के मौके पर जीव-जंतुओं, पेड़-पौधो को धरती पर उनके हिस्से का स्थान और अधिकार देने का संकल्प लिया जाता है।
Earth Day 22 April: आज पृथ्वी दिवस पर हमने विशेषज्ञों की राय जाननी चाही, कि कैसे हम पर्यावरण को बचाएं, धरती को कैसे सुरक्षित रखें, भारतीय संस्कृति और पर्यावरण में कैसा तालमेल था और होना चाहिए। इन सभी संबंधों से सामंजस्य बिठाकर हम कैसे जल, जंगल, जमीन और मानवता को बचा सकते हैं। और पर्यावरण को जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों के साथ मानव समाज को कैसे सुरक्षित रखा जा सके।
पर्यावरण को लेकर निरंतर शोध कर रहे इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मयंक कुमार ने बड़ी बेबाकी से अपनी राय पेश की।
Earth Day 22 April: प्रोफेसर डॉ. मयंक कुमार ने अर्थ डे के बारे में बताया कि मौसम परिवर्तन के इस दौर में पृथ्वी दिवस का महत्व और बढ़ जाता है। आप सब समझ रहे हैं कि तापमान वृद्धि का ये संकट जो आज समाज के सामने मुंह बाए खड़ा है, उसमें मानव द्वारा प्रकृति के शोषण की भूमिका का बड़ा रोल है। इसे किसी भी तरह से नकारा नहीं जा सकता है।
प्रोफेसर कुमार ने जोर देकर कहा कि कुछ समय पहले तक मनुष्य प्रकृति से सामंजस्य बनाकर रहता था, जो कि उनकी लोक संस्कृति और आचार-विचार व्यवहार में पूरी तरह से नज़र आता था।
उन्होंने राजस्थान का उदाहरण देते हुए कहाकि अगर हम राजस्थान में जल संचयन के पारंपरिक तरीकों को देखें तो समझ में आता है कि किस तरीके से तत्कालीन समाज ने प्रकृति से स्वतः प्रदत बारिश के पानी को संजोया और उस मरु भूमि में जीवन को आसान बना लिया।
Earth Day 22 April: मयंक ने कहाकि इसी प्रकार अगर हम गौर करें तो समझ में आता है कि राजस्थानियों ने वनस्पति और भूमि से भी गहरा संबंध बना रखा था, जोकि उनके खानपान उनके रहन-सहन और उनके जीवन-यापन में नज़र आता है। आज पृथ्वी दिवस पर हम उम्मीद करते हैं कि मनुष्य प्रकृति पर आई हुई इस मानव जनित समस्या को समझेगा और इसके निवारण हेतु प्रकृति का ध्यान रखते हुए अपना जीवन व्यतीत करेगा।
इसी कड़ी में अवध क्षेत्र की संस्कृति और पर्यावरण पर निरंतर अध्ययन कर रहे लखनऊ विश्वविद्यालय के पर्यटन अध्ययन संस्थान से जुड़े डॉ. शालिक राम पाण्डेय का कहना है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से धरती के औसत तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है। उन्होंने कहाकि भूमि उपयोग में परिवर्तन भी इसके लिए जिम्मेदार काफी है।
डॉ. पाण्डेय ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहाकि मानवीय गतिविधियों एवं क्रिया-कलापों की वजह से दुनिया का तापमान बढ़ रहा है और इससे जलवायु में निरंतर परिवर्तन से मानव जीवन का हर पहलू बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है।
उन्होंने कहाकि जलवायु परिवर्तन का मुख्य कारण मनुष्य ही है। क्लाइमेट में चेंज धीरे-धीरे होता है। लेकिन मनुष्य द्वारा पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई और जंगल को खेती या मकान बनाने के लिए उपयोग करने से इसका प्रभाव सीधे-सीधे जलवायु पर पड़ने लगा है।
Earth Day 22 April: डॉ. शालिक ने कहाकि भारतीय संस्कृति के मूल में पर्यावरण संरक्षण की भावना है। पर्व-त्योहार हो, विवाह की रस्में हों या लोकगीत व लोकचित्रों का आलेखन हो। इन सभी में पंचतत्वों के प्रति आदर के साथ उन्हें अक्षुण्ण रखने का संकल्प दिखता है।
डॉ. पाण्डेय ने कहाकि हमारे पूर्वज जंगल सम्पदा का महत्व समझते थे और इसीलिए पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक थे। पर्यावरण के तत्वों जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि, आकाश, वनस्पति आदि के प्रति हमारे ग्रंथों में, हमारी लोक संस्कृति का बड़े पैमाने पर महत्व दिखता है।
हमारे पुरखे वृक्ष, नदी, सरोवर, पोखर, कुआं सबकी उपयोगिता समझते थे। हमारे पूर्वजों ने मिट्टी, अन्न, पशु, पक्षी सबकी उपासना की। हम उस महान संस्कृति के वाहक हैं, हमें भी उनके अपनाए रास्तों से बहुत कुछ सीखना चाहिए। तभी जाकर आम हम धरती को संरक्षित रख सकते हैं। प्रकृति और पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़े डॉ. शालिक राम अर्थ दिवस पर भारतीय संस्कृति पर जोर देकर कहते हैं कि हमारे यहां चौरासी लाख योनियों में मनुष्य योनि को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। लेकिन अन्य योनियों की महत्ता को नकारा नहीं जाता।
आशय ये है कि प्रकृति के प्रत्येक तत्व से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है और यह तभी संभव है जब प्रकृति के प्रति मनुष्य की आत्मीयता ठीक उसी प्रकार हो, जैसे मां-बाप, भाई-बहन, गुरु-सखा और अन्य प्रियजनों के साथ होती है। यह आत्मीयता भारतीय संस्कृति में पूरी तरह से रची-बसी है। उसकी झलक हमें व्रत-पूजा, तीज-त्योहार, उत्सवों, लोकगीतों, लोककथाओं, कहावतों, परंपराओं और लोक व्यवहार में दिखती है।
उन्होंने कहाकि लोकजीवन की धारणा में नदी माता हैं, पहाड़ दोस्त हैं, चिरैया सहेली है, धरती मां हैं तो अन्न को देवता माना गया है। वहीं वन हमारे जीवन का आधार है। प्रकृति के वे सारे तत्व, जिनसे मिलकर यह पृथ्वी और धरती पर पाए जाने वाले सभी जड़-चेतन बने हैं, वे मानव के सबसे करीब हैं। ऐसे में आज के समाज को इन सभी तत्वों की रक्षा के लिए सजग और सतर्क रहना होगा।
Earth Day 22 April: उन्होंने पर्यावरण और भारतीय संस्कृति की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि हमारे समाज में विवाह में मटकोर की जो विधि है, जिसमें घर की बूढ़े-बुर्जु पुरनियां से लेकर नयी नवेली सभी स्त्रियां मिलकर तालाब के किनारे की मिटटी कोड़कर लाती हैं और फिर उसी पवित्र माटी से विवाह की वेदी व नया चूल्हा आदि बनते हैं और इस क्रम में जो मटकोरा गायी जाती है। कहने का मतलब ये है कि जब प्रकृति का समुचित आदर होगा तभी हम सब सुरक्षित रहेंगे।