क्या प्रयोग और प्रगतिशीलता के नाम पर नाटक में कुछ भी दिखाया जा सकता है?
Hindu Astha Ka Apman: लखनऊ के कलामण्डपम प्रेक्षागृह में भारतेंदु नाट्य अकादमी की ओर से साहित्यकार सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के जीवन पर आधारित नाटक नीलकण्ठ निराला के 11 और 12 दिसम्बर 2024 को हुये मंचन में हिन्दू आस्था का अपमान किया गया।
मंच पर एक ओर राम का स्तुति वंदन- श्री राम चन्द्र कृपालु भजमन…. गाया जा रहा था तो वहीं दृश्यबंध के नाम पर जो आठ-दस इंच के चार लेवल पुस्तक सजी अलमारी के रूप में तैयार किये गये थे। भले ही इनमें असल पुस्तकें न हों केवल रंग से ही पुस्तकों का आभास कराया जा रहा हो, पर इनमें दो लेवल पर रामायण पुस्तक भी प्रेक्षागृह में बैठे बैठे दिखायी दी। कलाकार उस लेवल पर चढ़कर, (जूते पहने भी) संवाद अदायगी करते रहे। आश्चर्य की बात यह है कि यह स्वयं राम की भूमि अवध में हो रहा है!
क्या ऐसा अन्य धर्मों के ग्रन्थों को दिखाते हुए किया जा सकता है?
एक तो एक प्रतिष्ठित साहित्यकार के घर पांव के नीचे साहित्य दिखलाना वैसे ही मन को खिन्न कर रहा था, उसपर इस तरह रामायण दिखलाना और भी खराब लगा।
यह एक छात्र प्रस्तुति थी लेकिन अन्य सामान्य प्रेक्षकों के साथ निर्देशक सहित अकादमी के शिक्षक, अध्यक्ष और अतिथि सभी प्रस्तुति देख तो रहे ही थे। इसपर किसी ने आपत्ति क्यों नहीं उठायी!
जैसे अस्पष्ट लाइनें खींचकर अन्य पुस्तकें दिखायी गयीं, वैसे ही वह पुस्तकें भी दिखायी जा सकती थीं, स्पष्ट रूप से रामायण लिखने की क्या आवश्यकता थी जानबूझ कर अपमान करने की?
एक अलमारी में भी करीने से वेद, विवेकानंद के साथ रखी रामायण लिखी पुस्तक का आभास कराया गया। क्या निराला के घर में यह एक आभासी रामायण पुस्तक काफी नहीं थी?
यहां यह भी बताते चलें कि प्रमुख छायावादी कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला जी ने भी रामायण की अन्तर्कथाएँ नाम की किताब लिखी है। यह किताब साल 1956 में प्रकाशित हुई थी। इसके अलावा, निराला जी ने ‘राम की शक्ति पूजा’ नाम का काव्य भी लिखा था। यह काव्य 23 अक्टूबर, 1936 को पूरा हुआ था।
नाटक में निराला को तीन रूपों में दर्शाना अच्छा प्रयोग था। प्रस्तुति में से निराला की सर्वाधिक लोकप्रिय रचना- ‘वह तोड़ती पत्थर देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर….’ के बिना भी अधूरी थी! यह रचना कहीं इसलिए तो नहीं जानबूझ कर गायब रही कि इसमें योगी सरकार द्वारा बदला गया प्रयागराज का पूर्व नाम था?
- राजवीर रतन, पत्रकार, रंगकर्मी और समीक्षक